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All about Jagannath Puri Rath Yatra 2018 in Hindi

पुरी की भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा: सब कुछ जो आप जानना चाहते हैं

All about  Jagannath Puri Rath Yatra in Hindi

पुरी की रथ यात्रा Puri Rath Yatra में शामिल होने और भगवान श्री जगन्नाथ जी के दर्शन करने के लिए  देश—दुनिया से लाखों श्रद्धालु हर साल आते हैं। 

 विवेक जादोन@hindihaat

जिनके चरण सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में फैले हैं, जिनकी नाभि असीम है, सभी दिशाएं जिनके कान हैं, सूर्य एवं चन्द्रमा जिनके नेत्र हैं और स्वर्ग जिनका मस्तक है, ऐसे विराट स्वरूप वाले भगवान श्रीजगन्नाथ जी के दर्शन के लिए देश-विदेश से हर साल लाखों की तादाद में श्रद्धालु आते हैं। खासकर, जब रथ यात्रा का अवसर होता है, तब ऐसा लगता है कि आस्था का पूरा समुद्र ही पुरी में उमड़ पड़ा हो।

पुरी का धार्मिक महत्व essay on rath yatra in hindi language

हिंदू धर्म के चार धामों में जगन्नाथ पुरी Jagannath Puri बहुत महत्व रखता है, अन्य तीन हैं- बद्रीनाथ, द्वारिका और रामेश्वरम।  आदि शंकराचार्य जब यहां पधारे तो उन्होंने गोवर्धन मठ की स्थापना की। तब से पुरी को सनातन धर्म के चार धामों में एक माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु पुरी में भोजन करते हैं, रामेश्वरम में स्नान करते हैं, द्वारका में शयन करते हैं और बद्रीनाथ में ध्यान करते हैं। पुरी में भगवान जगन्नाथ के दर्शन किए बिना धामों की यात्रा अधूरी मानी जाती है।


नीलांचल पर्वत पर बना है यह पवित्र मंदिर

धार्मिक नगरी पुरी उड़ीसा की राजधानी भुबनेश्वर से करीब 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पुरी को जगन्नाथपुरी, जगन्नाथधाम, शंखक्षेत्र, श्रीक्षेत्र, पुरुषोत्तमक्षेत्र, नीलगिरि, नीलांचल के नाम से भी जाना जाता है। पुरी में जगन्नाथ मंदिर नीलांचल पर्वत पर बना है और इसका निर्माण 12वीं शताब्दी में हुआ था। यहां श्रीजगन्नाथ जी के रूप में भगवान विष्ण की पूजा की जाती है। भगवान जगन्नाथ यहां अपनी बहन सुभद्रा Subhadra और बड़े भाई बलभद्र Balbhadra के साथ विराजे हैं। पुरी के जगन्नाथ मंदिर में चार द्वार हैं, जिनके नाम सिंह द्वार, अश्व द्वार, व्याघ्र द्वार एवं हस्ति द्वार हैं।
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 रथ यात्रा उत्सव jagannath rath yatra story

मौसी के घर जाते हैं भगवान rath yatra history

ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा यानी देवस्नान पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और बड़े भैया बलभद्र जी को फूलों के सुगन्धित रस से महास्नान कराया जाता है, जिसके बाद 15 दिन के लिए भगवान बीमार हो जाते हैं और अनासरा पिंडी में एकांतवास में रहते हैं। आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा को भगवान पुनः को नवजौबन दर्शन के लिए श्रीमंदिर में विराजते हैं। इसके अगले दिन आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है। भक्तजन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र जी और सुभद्रा के अलग-अलग रथों को पूरे श्रद्धाभाव से खींचकर मौसी मां के घर यानी गुंडिचा मंदिर लेकर जाते हैं। सबसे आगे बड़े भैया बलभद्र जी का Taladhwaja Chariot, उसके बाद बहन सुभद्रा का रथ Darpadalana Chariot और सबसे बाद में श्रीजगन्नाथ जी का रथ चलता है। भगवान जगन्नाथ को नंदिघोष रथ Nandighosa Chariot में ले जाया जाता है, वह 45 फीट 6 इंच ऊंचा होता है और इस रथ में 18 पहिए होते हैं। भगवान बीच में उड़िया व्यंजन पोडा पीठा का आनंद उठाने के लिए रुकते हैं और शाम तक गुंडिचा मंदिर पहुंच जाते हैं। रथ यात्रा उत्सव के पांचवें दिन यानी हेरा पंचमी को सुबर्ण महालक्ष्मी गुंडिचा मंदिर में भगवान जगन्नाथ से मिलने आती हैं।


रूठी मां लक्ष्मी तीन दिन तक नहीं करने देतीं श्रीमंदिर में प्रवेश rath yatra in hindi

जगन्नाथ जी, बलभद्र जी और सुभद्रा जी आठ दिन तक मौसी के घर विश्राम करते हैं, जिसके बाद नौवें दिन यानी बाहुड़ा यात्रा पर तीनों भगवान को गुंडिचा मंदिर Gundicha Temple से श्रीमंदिर में पूरे धूमधाम के साथ तीन रथों में बिठाकर वापस लाया जाता है। परंपरा के अनुसार मां लक्ष्मी भगवान जगन्नाथ से रूठ जाती हैं और भगवान के श्रीमंदिर पहुंचने पर उन्हें मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं देतीं। इसलिए भगवान रथ में ही विराजकर श्रद्धालुओं को दर्शन देते हैं। अगले दिन मां लक्ष्मी को मनाने के लिए भगवान स्वर्णाभूषण पहनकर सूना बेश धरते हैं। बाहुड़ा यात्रा से तीन दिन बाद मां लक्ष्मी के मान जाने पर वापस श्रीमंदिर में प्रवेश करते हैं और रत्न सिंहासन पर विराजमान होते हैं। इस प्रकार रथ यात्रा उत्सव सम्पन्न होता है।
यूं तो भारत के अलग-अलग हिस्सों में पूरे उत्साह और भक्ति भाव से रथ यात्रा का आयोजन होता है, लेकिन पुरी (उड़ीसा) की रथ यात्रा में भगवान श्रीजगन्नाथ जी की लीलाएं देखने का अपना अलग ही आनंद है।  इन नौ दिनों में जगन्नाथ जी के दर्शन को आड़पदर्शन कहा जाता है। 

महाप्रसाद की व्यवस्था

मंदिर परिसर में ही आनंदबाजार है, जहां भगवान जगन्नाथ को भोग लगाने के बाद श्रद्धालुओं के लिए महाप्रसाद की व्यवस्था है। सुखुली (सूखा महाप्रसाद) और निर्मल्य ( धूप में सूखे चावलों  का महाप्रसाद) घर ले जाने का भी रिवाज है। 


पुरी में अन्य धार्मिक एवं दर्शनीय स्थल

पुरी में कई अन्य प्रमुख मंदिर भी हैं। पंच पांडव मंदिर के नाम से प्रसिद्ध लोकनाथ मंदिर, मार्कंडेश्वर, कपालमोचन, यमेश्वर और नीलकण्ठेश्वर के अलावा दक्षिणकाली, श्यामकाली, दारिया महादेव और सिद्ध महावीर मंदिर में भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए जाते हैं। पुरी में समुद्रतट पर बिखरी सुनहरी पीली रेत बरबस ही हमारा ध्यान आकर्षित कर लेती है। सूर्योदय औऱ सूर्यास्त के समय यहां लहरों को देखना एक यादगार अनुभव होता है।
जो श्रद्धालु जगन्नाथपुरी दर्शन के लिए आते हैं, वे यहां से कोणार्क सूर्य मंदिर देखने भी जरूर जाते हैं, जो यहां से सिर्फ 40 किमी की दूरी पर ही है। इसके अलावा ब्रह्मगिरि में अलारनाथ मंदिर, सत्पदा में डॉल्फिन पार्क औऱ विश्व धरोहर के रूप में विख्यात रघुराजपुर गांव महत्वपूर्ण स्थान हैं।

When is Rath Yatra in 2018
 2018 रथ यात्रा कब है

भगवान जगन्नाथ की पुरी रथ यात्रा 2018 का विस्तृत कार्यक्रम इस प्रकार है।

श्री गुंडिचा -14 जुलाई, 2018-

 भगवान जगन्नाथ,  बलभद्र और सुभद्रा को रथों में विराजमान कर गुंडिचा मंदिर लाया जाएगा।

हेरा पंचमी- 17 जुलाई, 2018-

 भगवान जगन्नाथ को वापस आया न देखकर  सुबर्ण महालक्ष्मी चिंतित हो जाती हैं और गुंडिचा मंदिर में भगवान जगन्नाथ से मिलने आती हैं।

बाहुड़ा यात्रा- 22 जुलाई, 2018-

 रथ यात्रा के आठ दिन बाद दशमी के दिन भगवान जगन्नाथ सिंह द्वार से होकर वापस मंदिर में प्रवेश करते हैं।

सूना बेश- 23 जुलाई, 2018-

  मां लक्ष्मी को मनाने के लिए भगवान स्वर्णाभूषण पहनकर सूना बेश धारण करते हैं।

निलाद्रि बिजय- 26 जुलाई, 2018- 

मां लक्ष्मी के मान जाने पर वापस श्रीमंदिर में प्रवेश करते हैं और रत्न सिंहासन पर विराजमान होते हैं। 

कैसे पहुंचें पुरी

पुरी देश के बाकी हिस्सों से वायु, रेल और सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। निकटतम एयरपोर्ट भुबनेश्वर में है, जहां से टैक्सी, ट्रेन या बस के द्वारा पुरी पहुंच सकते हैं। दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई, अहमदाबाद आदि शहरों से पुरी के लिए सीधी रेल कनेक्टिविटी है। रथ यात्रा के दिनों में भारतीय रेलवे कई विशेष ट्रेनों का संचालन भी करता है। गुंडिचा मंदिर के पास ही पुरी का बस स्टैंड है, जहां से बस आसानी से मिल जाती हैं। एक बात और, वाहन ले जाने की अनुमति सिर्फ पार्किंग स्थल तक ही  है। पार्किंग स्थल से मंदिर परिसर तक श्रद्धालुओं को लाने- ले जाने के लिए शटल सर्विस  संचालित की जाती है। ठहरने के लिए धर्मशालाएं, लॉज, होटल, गेस्ट हाउस आसानी से मिल जाते हैं।

पुरी का मौसम

पुरी में गर्मियों में अधिकतम तापमान सामान्यतः 36 डिग्री सेल्सियस और सर्दियों में न्यूनतम तापमान 17 डिग्री सेल्सियस तक रहता है।  
उमस करीब-करीब साल भर ही रहती है। हालांकि समंदर से ठंडी हवा आती रहती है, इसलिए गर्मी का इतना एहसास नहीं होता।

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