Atal Bihari Vajpayee and his Poems in Hindi
अटल बिहारी वाजपेयी और उनकी कविताएं
विजय खंडेलवाल @hindihaat
अटल बिहारी वाजपेयी Atal Bihari Vajpayee एक सफल राजनेता के अलावा हिंदी भाषा के सिद्ध कवि भी हैं। उनकी काव्यात्मक रचनाओं में एक गम्भीर कवि की स्पष्ट झलक दिखाई देती है। ‘मेरी इक्यावन कविताएं’ (Meri Ikyavan Kavitayen) उनका विश्व प्रसिद्ध कविता संग्रह है। उन्होंने ‘न दैन्यं न पलायनम’ (Na Dainyam Na Palaynam) जैसे कविता संग्रह हिंदी काव्य जगत (Hindi Poetry) को दिए हैं।
अटलजी की कविताएं हिंदी काव्य जगत में विशेष रूप से देखी जाती हैं। उन्हें काव्य रचना की प्रतिभा विरासत से भी मिली। अटलजी के पिता (Father of Atal Bihari) कृष्ण बिहारी वाजपेयी भी ग्वालियर रियासत में जाने—माने कवि थे जो खड़ी बोली और ब्रज भाषा में कविताओं के लिए जाने जाते थे। उनकी इन कविताओं को उनके राजनीतिक जीवन से जुड़ा भी समझा जाता है मगर साहित्य के जानकार अटलजी की कविताओं को जीवन दर्शन से जोड़कर भी देखते हैं।
अटल बिहारी का कविरूप
Atal Bihari as a Poet
अटल बिहारी वाजपेयी को एक परिपूर्ण कवि कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। अटल बिहारी वाजपेयी की पहली कविता थी... ‘एक शहंशाह ने बनवा के हसीन ताज महल...’। इसमें अटलजी ने ताजमहल की सुंदरता का बखान न करके इसे बनाने वाले कारीगरों की ओर ध्यान आकृष्ट किया था। इससे उनके संवेदनशील कवि मन का पता चलता है। उन्होंने अपनी कविताओं में सामाजिक विषमताओं से लेकर राष्ट्र प्रेम, संघर्षपूर्ण जीवन और जीवन की विभिन्न अनुभूतियों को अभिव्यक्त किया है। उनकी बाद की कविताओं में जीवन दर्शन के साथ—साथ छायावाद की झलक भी देखने को मिलती है। काफी जगह अटलजी ने संवेदनशील विषयों को अपनी कविताओं में लिखने के लिए व्यंग्य का भी भरपूर सहारा लिया है।
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मशहूर गजल गायक स्वर्गीय जगजीत सिंह (Jagjit Singh) ने भी संवेदना नामक म्यूजिक एलबम में अटल बिहारी वाजपेयी की कविताओं को गाया था। इस एलबम में अटलजी की चौराहे पर लुटता चीर..., दूर कहीं कोई रोता है..., एक बरस बीत गया..., कदम मिलाकर चलना होगा..., क्या खोया क्या पाया जग में... और जीवन बीत चला... जैसी कविताएं जगजीत सिंह ने गायी हैं।
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संवेदना: अटलजी की कविताएं
Lyrics of Atal Bihari Poems
अटल बिहारी वाजपेयी की कविताओं का मर्म जानना हो तो इस जगजीत सिंह के एलबम संवेदना में संकलित की गई कविताओं को ही पढ़ लेना काफी है।
पंद्रह अगस्त की पुकार...
Pandrah august ki pukar...
पंद्रह अगस्त का दिन कहता
आज़ादी अभी अधूरी है
सपने सच होने बाकी हैं
रावी की शपथ न पूरी है
जिनकी लाशों पर पग धर कर
आज़ादी भारत में आई
वे अब तक हैं खानाबदोश
ग़म की काली बदली छाई
कलकत्ते के फुटपाथों पर
जो आँधी-पानी सहते हैं
उनसे पूछो, पंद्रह अगस्त के
बारे में क्या कहते हैं
हिंदू के नाते उनका दु:ख
सुनते यदि तुम्हें लाज आती
तो सीमा के उस पार चलो
सभ्यता जहाँ कुचली जाती
इंसान जहाँ बेचा जाता
ईमान ख़रीदा जाता है
इस्लाम सिसकियां भरता है
डालर मन में मुस्काता है
भूखों को गोली नंगों को
हथियार पिन्हाए जाते हैं
सूखे कंठों से जेहादी
नारे लगवाए जाते हैं
लाहौर, कराची, ढाका पर
मातम की है काली छाया
पख्तूनों पर, गिलगित पर है
ग़मगीन गुलामी का साया
बस इसीलिए तो कहता हूं
आज़ादी अभी अधूरी है
कैसे उल्लास मनाऊँ मैं
थोड़े दिन की मजबूरी है
दिन दूर नहीं खंडित भारत को
पुन: अखंड बनाएंगे
गिलगित से गारो पर्वत तक
आज़ादी पर्व मनाएंगे
उस स्वर्ण दिवस के लिए आज से
कमर कसें बलिदान करें
जो पाया उसमें खो न जाएं
जो खोया उसका ध्यान करें
क्या खोया क्या पाया जग में…
Kya khoya kya paya jag me...
क्या खोया क्या पाया जग में, मिलते और बिछड़ते मग में
मुझे किसी से नहीं शिकायत, यद्यपि छला गया पग पग में
एक दृष्टि बीती पर डाले यादों की पोटली टटोलें
अपने ही मन से कुछ बोले-अपने ही मन से कुछ बोले
पृथ्वी लाखों वर्ष पुरानी, जीवन एक अनंत कहानी
पर तन की अपनी सीमाएं, यद्यपि सौ सर्दों की वाणी
इतना काफी है अंतिम दस्तक पर खुद दरवाज़ा खोलें…
अपने ही मन से कुछ बोले
जन्म मरण का अविरत फेरा, जीवन बंजारों का डेरा
आज यहाँ कल वहाँ कूच है, कौन जानता किधर सवेरा
अँधियारा आकाश असीमित प्राणों के पंखों को खोले…
अपने ही मन से कुछ बोले
क्या खोया क्या पाया जग में, मिलते और बिछड़ते मग में
मुझे किसी से नहीं शिकायत, यद्यपि छला गया पग पग में
एक दृष्टि बीती पर डाले यादों की पोटली टटोलें
अपने ही मन से कुछ बोले-अपने ही मन से कुछ बोले
कदम मिलाकर चलना होगा...
Kadam milakar chalna hoga...
बाधाएं आती हैं आएं
घिरें प्रलय की घोर घटाएं
पावों के नीचे अंगारे
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं
निज हाथों में हंसते-हंसते
आग लगाकर जलना होगा
कदम मिलाकर चलना होगा
हास्य-रूदन में, तूफानों में
अमर असंख्यक बलिदानों में
उद्यानों में, वीरानों में
अपमानों में, सम्मानों में
उन्नत मस्तक, उभरा सीना
पीड़ाओं में पलना होगा
कदम मिलाकर चलना होगा
उजियारे में, अंधकार में
कल कहार में, बीच धार में
घोर घृणा में, पूत प्यार में
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में
जीवन के शत-शत आकर्षक
अरमानों को ढलना होगा
कदम मिलाकर चलना होगा
सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ
असफल, सफल समान मनोरथ
सब कुछ देकर कुछ न मांगते
पावस बनकर ढलना होगा
कदम मिलाकर चलना होगा
कुछ कांटों से सज्जित जीवन
प्रखर प्यार से वंचित यौवन
नीरवता से मुखरित मधुबन
परहित अर्पित अपना तन-मन
जीवन को शत-शत आहुति में
जलना होगा, गलना होगा
क़दम मिलाकर चलना होगा
एक बरस बीत गया...
Ek baras beet gaya...
झुलासाता जेठ मास
शरद चांदनी उदास
सिसकी भरते सावन का
अंतर्घट रीत गया
एक बरस बीत गया
सीकचों मे सिमटा जग
किंतु विकल प्राण विहग
धरती से अम्बर तक
गूंज मुक्ति गीत गया
एक बरस बीत गया
पथ निहारते नयन
गिनते दिन पल छिन
लौट कभी आएगा
मन का जो मीत गया
एक बरस बीत गया
चौराहे पर लुटता चीर...
Chaurahe par lutataa cheer...
चौराहे पर लुटता चीर
प्यादे से पिट गया वजीर
चलूँआखिरी चाल कि बाजी छोड़ विरक्ति सजाऊँ?
राह कौन सी जाऊँ मैं?
सपना जन्मा और मर गया
मधु ऋतु में ही बाग झर गया
तिनके टूटे हुये बटोरूँ या नवसृष्टि सजाऊँ मैं?
राह कौन सी जाऊँ मैं?
दो दिन मिले उधार में
घाटों के व्यापार में
क्षण-क्षण का हिसाब लूँ या निधि शेष लुटाऊँ मैं?
राह कौन सी जाऊँ मैं ?
जीवन बीत चला
कल कल करते आज
हाथ से निकले सारे
भूत भविष्य की चिंता में
वर्तमान की बाज़ी हारे
पहरा कोई काम न आया
रसघट रीत चला
जीवन बीत चला
हानि लाभ के पलड़ों में
तुलता जीवन व्यापार हो गया
मोल लगा बिकने वाले का
बिना बिका बेकार हो गया
मुझे हाट में छोड़ अकेला
एक एक कर मीत चला
जीवन बीत चला
दूर कहीं कोई रोता है...
Door kahin koi rota hai...
तन पर पहरा भटक रहा मन,
साथी है केवल सूनापन,
बिछुड़ गया क्या स्वजन किसी का,
क्रंदन सदा करूण होता है ।
जन्म दिवस पर हम इठलाते,
क्यों ना मरण त्यौहार मनाते,
अन्तिम यात्रा के अवसर पर,
आँसू का अशकुन होता है ।
अंतर रोयें आँख ना रोयें,
धुल जायेंगे स्वप्न संजोये,
छलना भरे विश्व में केवल,
सपना ही तो सच होता है ।
इस जीवन से मृत्यु भली है,
आतंकित जब गली गली है,
मैं भी रोता आसपास जब
गीत नहीं गाता हूं...
Geet naya gata hu...
बेनकाब चेहरे हैं
दाग बड़े गहरे हैं
टूटता तिलस्म, आज सच से भय खाता हूं
गीत नही गाता हूं
लगी कुछ ऐसी नज़र
बिखरा शीशे सा शहर
अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूं
गीत नहीं गाता हूं
पीठ मे छुरी सा चांद
राहु गया रेखा फांद
मुक्ति के क्षणों में बार-बार बंध जाता हूं
गीत नहीं गाता हूं
आओ फिर से दीया जलाएं...
Aao fir se diya jalayen...
आओ फिर से दीया जलाएं
आओ फिर से दिया जलाएं
भरी दूपहरी में अंधियारा
सूरज परछाई से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़ें
बुझी हुई बाती सुलगाएं
आओ कि से दीया जलाएं
हम पड़ाव को समझे मंजिल
लक्ष्य हुआ आंखों से ओझल
वर्तमान के मोहजाल में
आने वाला कल न भुलाए
आओ कि से दीया जलाएं
आहुति बाकी यज्ञ अधूरा
अपनों के विघ्नों ने घेरा
अंतिम जय का वज्र बनाने
नव दधीचि हड्डियां गलाए
आओ कि से दीया जलाएं
अटलजी की ‘मेरी इक्यावन कविताएं’
‘Meri Ikyavan Kavitayen’ of Atalji
भारत रत्न Bharat Ratna अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय काव्य जगत के भी अनमोल रत्न हैं। ‘मेरी इक्यावन कविताएं’ अटल बिहारी वाजपेयी का प्रसिद्ध कविता संग्रह है। इस संग्रह में उन्होंने जीवन दर्शन की कई कविताएं भी शामिल की हैं। इस संग्रह में अटलजी की निम्न कविताएं हैं—
आओ फिर से दिया जलाएं… Aao fir se diya jalayen...
हरी हरी दूब पर… Hari-hari doob par...
पहचान… Pehchan...
गीत नहीं गाता हूं… Geet nahi gata hu
न मैं चुप हूं न गाता हूं… Na main chup hu...
गीत नया गाता हूं… Geet naya gata hu...
ऊंचाई… Oonchayi
कौरव कौन, कौन पांडव… Kaurav kaun, pandav...
दूध में दरार पड़ गई… Doodh me darar...
मन का संतोष… Mann ka santosh...
झुक नहीं सकते… Jhuk nahi sakte...
दूर कहीं कोई रोता है… Door kahin koi...
जीवन बीत चला… Jeevan beet chala…
मौत से ठन गई… Maut se Than…
राह कौन सी जाऊं मैं… Raah kaunsi jaun...
मैं सोचने लगता हूं… Main Sochne lagta hu...
हिरोशिमा की पीड़ा… Hiroshima ki peeda...
नए मील का पत्थर… Naye meel ka pathhar...
मोड़ पर… Mod par...
आओ मन की गांठें खोलें… Aao mann ki...
नई गांठ लगती… Nayi gaanth...
यक्ष प्रश्न… Yaksha prashna...
क्षमा याचना… Kshama yachna…
स्वतंत्रता दिवस की पुकार… Swatantrata diwas...
अमर आग है… Amar aag hai...
परिचय… Parichay...
आज सिन्धु में ज्वार उठा है… Aaj Sindhu me...
जम्मू की पुकार… Jammu ki pukar...
कोटि चरण बढ़ रहे … Koti charan badh rahe...
गगन मे लहरता है भगवा… Gagan me lahrata...
उनकी याद करें… Unki yaad karen...
अमर है गणतंत्र… Amar hai gantantra...
सत्ता… Satta...
मातृपूजा प्रतिबंधित… Matrupooja...
कंठ-कंठ में एक राग है… Kanth-kanth me...
आए जिस-जिस की हिम्मत हो… Aaye jis-jis ki himmat...
एक बरस बीत गया… Ek baras beet gaya...
जीवन की ढलने लगी सांझ… Jeevan ki dhalne lagi...
पुनः चमकेगा दिनकर… Punah chamkega dinkar
कदम मिलाकर चलना होगा… Kadam milakar...
पड़ोसी से… Padosi se...
रोते रोते रात सो गई… Rote-rote raat...
बुलाती तुम्हें मनाली… Bulati tumhe manali...
अंतरद्वंद्व… Antardvand...
बबली की दिवाली… Babli ki diwali...
अपने ही मन से कुछ बोलें… Apne hi mann se...
मनाली मत जइयो… Manali mat jaiyo...
देखो हम बढ़ते ही जाते… Dekho hum...
जंग न होने देंगे… Jang na hone denge...
आओ! मर्दो नामर्द बनो… Aao! mardon...
सपना टूट गया… Sapna toot gaya…
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