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Padmavati biography and history in hindi

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Padmavati biography and history in hindi
चित्तौड़ की रानी पद्मिनी की जीवनी और इतिहास
मेवाड़ को अपनी वीरता, आन, बान और शान के लिए जाना जाता है. इस वीर भूमि पर एक से एक वीर और वीरांगनाएं पैदा हुई है. राणा सांगा, महाराणा प्रताप, पन्नाधाय के साथ एक और महान नाम इस धरती की पहचान है तो चित्तौड़ की रानी पद्मिनी padmavati. चित्तौड़ के रावल रतन सिंह प्रथम सन् 1302 में गद्दी पर बैठे. उनका विवाह पूगल की चौहान राजकुमारी पद्मिनी padmavati के साथ हुआ. (वस्तुतः पद्मिनी पूगल के भाटियों की बेटी और सिरोही के देवड़ा चौहानो की भानजी थी। यह ऐतिहासिक तथ्य है कि पूगल या इसके आस-पास कभी भी चौहानो का राज्य नहीं रहा और न ही चौहान वहां कभी बसते थे- स्रोतः चित्तौड़ के तीन साके लेखक भवानीसिंह चौहान ) hindihaat.com

पद्मिनी या जिन्हें कई स्थानो पर पद्मावती भी कहा गया है के विवाह के बाद गोरा और बादल भी चित्तौड रावल रतनसिंह की सेवा में आए. कई स्रोतों में गोरा को रानी पद्मिनी का मामा बताया गया है. हरि सिंह भाटी की पुस्तक ‘गजनी से जैसलमेर’ में पद्मिनी का जन्म सन् 1285 में बताया गया है और रावल रतन सिंह से उनके विवाह का उल्लेख 1300 ईस्वी में बताया गया है.
जहां एक ओर कई स्रोत पद्मावती padmavati को राजस्थान की धरती की बेटी बताते हैं, कई दूसरे ऐतिहासक स्रोत इस महान रानी को श्रीलंका की धरती से भी जोड़ते हैं. पद्मिनी padmavati पर सबसे प्राचीन पुस्तक ‘गोरा बादल रा कवित्त’ मिलती है जो एक कवित बंध है लेकिन न तो इसका रचना काल ज्ञात है और न ही रचियता का नाम पता चलता है. इसी तरह दूसरा प्रमुख वर्णन हेमरतन की पुस्तक ‘गोरा बादल री चउपई’ में मिलता है, जिसमें पद्मावती padmavati को सिंहल द्वीप की राजकुमारी बताया गया है.

padmavati story पद्मिनी और रावल रतन सिंह का विवाह

इस कथा का आधार हेमरतन लिखित गोरा बादल री चउपई को बनाया गया है. इस कहानी के अनुसार सुन्दर चित्रकूट पर्वत पर अत्यधिक ऊंचा एक गढ़ था. उसमें गहलोत रत्नसेन राज करते थे. उनकी पटरानी प्रभावती थी. वह भोजन के सत्तर प्रकार जानती थी. राजा उनसे बहुत प्रेम करते थे. रत्नसेन और प्रभावती का एक शूरवीर पुत्र वीरभान था. एक दिन राजा भोजन पर बैठे थे लेकिन उन्हें भोजन स्वादिष्ट नहीं लगा. राजा ने रानी से कहा कि आज भोजन अच्छा नहीं लग रहा ....कोई दूसरी युक्ति करके रसोई बनाओ. इस पर प्रभावती ने कहा कि मेरी की हुई रसोई आपको अच्छी नहीं लगती तो कोई पद्मिनी ब्याह लाओ तो वही तुम्हारे मन की रसोई बना कर जिमाएगी. रत्नसेन यह उत्तर पाकर भोजन पर से उठ गए और उन्होंने कहा कि अब मैं पद्मिनी स्त्री ला कर ही भोजन करूंगा, यह कहकर वे पद्मिनी की खोज में निकल गए.
मार्ग में उन्हें एक पथिक मिला, जिसने राजा से बताया कि पद्मिनी स्त्री सिंहल द्वीप में होती थी और वह द्वीप दक्षिण दिशा में था, उसके मार्ग में अथाह समुद्र पड़ता था, इसलिए वहां पहुंचना संभव नहीं था. यह सुनकर राजा सिंहल द्वीप की ओर चल पड़े और समुद्र समीप आ गया. समुद्र के पार जाने का कोई उपाय नहीं दिख रहा था, उसी समय राजा को एक योगी दिख पड़े. उनका नाम शिव शर्मा था. राजा उस योगी के पास पहुंचे और योगी के सामने सिंहल द्वीप जाने की इच्छा बताई. योगी मंत्रशक्ति से रत्नसेन को सिंहल द्वीप ले जाता है. जहां पहुंचकर योगी सिंहल देश के राजा से रत्नसेन के लिए पद्मिनी का हाथ मांगता है और रत्नसेन तथा पद्मिनी का विवाह सम्पन्न होता है. जटमल कृत ‘गोरा बादल री बात’ में भी इसी कथा का जिक्र आता है.

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चित्तौड़ का शाका padmavati and khilji story

अलाउद्दीन खिलजी और रत्नसेन के बीच युद्ध करवाने में रत्नसेन के एक सेवक राघव चेतन का हाथ सभी ऐतिहासिक स्रोतों में बताया गया है. राघव चेतन जादू सहित कई कलाओं में पारंगत था और रत्नसेन उससे बहुत प्रसन्न रहते थे इसलिए उसे राजदरबार में विशेष महत्व भी प्राप्त था. राघव चेतन से रत्नसेन एक बार नाराज हुए तो उन्होंने उसे देश निकाला दे दिया. राघव चेतन वहां से निकल कर सीधे दिल्ली पहुंचा और अपने ज्योतिष ज्ञान के कारण दिल्ली में मशहूर हो गया. उसकी प्रसिद्धि सुल्तान तक पहुंची तो सुल्तान ने उसे बुला लिया. राघव चेतन ने अपनी सेवा से सुल्तान का दिल जीत लिया.
जब सुल्तान उस पर भरोसा करने लग गया तो राघव चेतन ने रावल रत्नसेन से अपने अपमान का बदला लेने का निश्चय किया और षडयंत्र पूर्वक और रानी पद्मिनी के रूप वैभव का वर्णन करके उसने अलाउद्दीन खिलजी को इस बात के लिए राजी कर लिया कि वह चित्तौड़ पर आक्रमण करें. अलाउद्दीन खिलजी अपनी सेना लेकर चित्तौड़ पहुंच गया और घेरा डाल दिया. लंबे समय तक घेरा डाले रहने और कई युद्धों में अपने सिपाहियों और सिपाहसालारों को खो देने के बाद उसे यह बात समझ में आ गई कि रत्नसेन को सीधे युद्ध में हराया नहीं जा सकता. अब उसने रत्नसेन को हराने के लिए छल का सहारा लिया और अपने दूत को रावल रत्नसेन से संधि प्रस्ताव के लिए भेजा, जिसमें उसने कहलवाया कि वह एक बार सिर्फ पद्मिनी को देखना चाहता है और किले में भोजन करना चाहता है. रावल रत्नसेन ने अलाउद्दीन खिलजी को किले में बुलाया लेकिन पद्मिनी ने खुद जाने की बजाय भोजन परोसने के लिए अपनी दासी को भेज दिया. राघव चेतन ने अलाउद्दीन खिलजी को यह बात बता दी. इससे वह नाराज हो गया और जब रत्नसेन खिलजी को छोड़ने के लिए कोट से बाहर आए तो उन्हें धोखे से पकड़ लिया.
राजा को जब शत्रु सेना ने पकड़ लिया तो कोट में रहने वाले गोरा और बादल ने एक योजना बनाई और डोली में पद्मिनी को लाने के नाम पर खुद चले गए और राजा को छुड़ा कर ले आए लेकिन इसमें गोरा का अपना बलिदान देना पड़ा. रत्नसेन ने वापस आकर इस अपमान का बदला लेने के लिए शत्रु से आमने सामने युद्ध लड़ने और केसरिया करने का निश्चय किया तो क्षत्राणियों ने जौहर करने का फैसला लिया. राजपूत सेना बादशाह की सेना पर टूट पड़ी और वीरांगना पद्मिनी के साथ हजारो महिलाओं ने जौहर किया। इस तरह चित्तौड़ का पहला साका हुआ.

मलिक मुहम्मद जायसी की पद्मावत padmavati book


  मलिक मुहम्मद जायसी ने भी रानी पद्मिनी, रत्नसेन, गोरा और बादल के साथ अलाउद्दीन खिलजी के संघर्ष को पद्मावत में जीवित किया. लेकिन जायसी की कहानी और राजस्थान के तात्कालीन साहित्यकारों में कई अंतर देखने को मिलते हैं. जायसी अपनी रचना में हीरामन तोते को जगह देते हैं जबकि उस काल की अन्य पुस्तकों में ऐसा कुछ नहीं मिलता, हो सकता है कि जायसी ने उस समय की किवदंतियों का सहारा लिया हो क्योंकि पंचतंत्र और उस समय के समाज में बोलते हुए तोते को कई कहानियों का सूत्रधार बनाया गया है. पद्मावत की रचना तिथि पर भी कुछ बात की जा सकती है क्योंकि जायसी ने पद्मावत में रचना तिथि की जो पंक्तियां दी है, उनका पाठ उसकी विभिन्न प्रतियों में तीन प्रकार से मिलता है. दूसरे कई फर्क भी जायसी कर बैठते हैं जैसे पहले की सभी रचनाओं में रत्नसेन की पहली पत्नी का नाम प्रभावती मिलता है जबकि जायसी ने पहली रानी का नाम नागमति कर दिया है. पहले की रचनाओं में रत्नसेन और प्रभावती के पुत्र वीरभान का भी उल्लेख मिलता है जबकि जायसी किसी पुत्र का उल्लेख नहीं करते हैं. राजस्थानी रचनाओं में जहां सिंहलपति का नाम नहीं मिलता, वहीं जायसी सिंहल द्वीप के राजा का नाम गंधर्वसेन बताते हैं. इस फर्क के अलावा भी कई और अंतर जायसी दूसरे साहित्यकारों से कर देते हैं।
(यह आलेख विभिन्न स्रोतों को आधार बना कर लिखा गया है और प्रत्येक स्रोत का यथासंभव जिक्र किया गया है. हिंदी हाट इसमें किसी तथ्य की न तो पुष्टि करता है और न ही खंडन.) 
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