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Ashwagandha Benefits in Hindi

अश्वगंधा के फायदे
Ashwagandha Benefits in Hindi

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अश्वगंधा Ashwagandha एक प्रकार का पौधा होता है जिससे कई आयुर्वेदिक दवाइयां बनाई जाती हैं. अश्वगंधा का उपयोग हजारों सालों से होता आ रहा है. अश्वगंधा को असगंध या वाजीगंधा भी कहा जाता है. अश्वगंधा चमत्कारी गुणों वाली ऐसी औषधि है, जो शरीर के लिए कई तरह से फायदेमंद है. अश्वगंधा दिमाग और मन को भी स्वस्थ रखती है.


आयुर्वेद में अश्वगंधा का महत्व

आयुर्वेद के अनुसार अश्वगंधा में अनेक औषधीय गुण पाए जाते हैं. इसकी जड़ों का इस्तेमाल कई प्रकार की दवाओं को बनाने में किया जाता है. इसके पौधे से इसका चूर्ण और कैप्सूल भी बनाया जाता है जिसके कई फायदे होते हैं, इसके सेवन से शरीर में खून की मात्रा को बढ़ाने, वजन को घटाने, लकवा से बचने सहित अन्य शारारिक समस्या को दूर करने में मदद मिलती है। आयुर्वेद में अश्वगंधा को जीर्णोद्धारक औषधि के रूप में मान्यता प्राप्त है. इसमें एण्टीटयूमर एवं एण्टीबायोटिक गुण भी पाए जाते हैं. प्रसिद्ध आयुर्वेदिक ग्रन्थ योगरत्नाकर की रसायन चिकित्सा के अनुसार अश्वगंधा की जड़ के चूर्ण को 15 दिनों तक दूध घी, तेल और पानी  के साथ सेवन करने से मनुष्य का शरीर सुन्दर, सुडौल, मजबूत और शक्तिवर्धक बनता है.
शिशिर ऋतु में अश्वगंधा के चूर्ण को दूध में मिलाकर व शहद तथा घृत मिलाकर जो व्यक्ति एक महीने तक सेवन करता है वह वृद्ध होने पर भी युवा के समान दिखाए देता हैं. अश्वगंधा या विथेनिया कुल की विश्व में 10 तथा भारत में 2 तरह की प्रजातियों पाई जाती है.
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त्वचा की बीमारियां दूर करता है अश्वगंधा

अश्वगंधा की जड़ों को त्वचा संबंधी बीमारियों के निदान में भी प्रयोग किया जाता है. अश्वगंधा चूर्ण और इसके सत् की गोलियां कैप्सूल सीरप और चूर्ण के रूप में विभिन्न नामों से बाजार में उपलब्ध हैं. अश्वगंधा में अनेक रसायन पाए जाते हैं. इसकी जड़ से क्यूसिओहायग्रीन एनाहायग्रीन ट्राॅपीन एनाफेरीन आदि 13 क्षाराभ (एल्केलायड्स) निकाले जा चुके हैं. इसमें कुल क्षाराभ 0.13 से 0.31 प्रतिशत होता है. इसके अतिरिक्त अश्वगंधा की जड़ में ग्लाइकोसाइड विटानिआल अम्ल स्टार्च शर्करा व अमिनो एसिड आदि भी पाए जाते है, जो स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक रसायन है.


खांसी एवं अस्थमा को दूर करने में सहायक है अश्वगंधा

इसकी जड़ों के चूर्ण का प्रयोग खांसी एवं अस्थमा को दूर करने के लिए भी किया जाता है. महिलाओं की बीमारियां जैसे श्वेतप्रदर, अधिक रक्तस्त्राव, गर्भपात आदि में अश्वगंधा की जड़ें लाभकारी होती हैं. तंत्रिका तत्र संबंधी कमजोरी को दूर करने में इसका प्रयोग किया जाता है. अश्वगंधा के द्वारा अनेक आयुर्वेदिक औषधि का निर्माण किया जाता है, जिसमें अश्वगंधारिष्ट मुख्य शास्त्रीय औषधि है जो अनेक रोगों में उपयोगी है.

शरीर के जोड़ मजबूत करता है अश्वगंधा

गठिया एवं जोड़ों के दर्द को ठीक करने के लिए भी इसकी जड़ों का चूर्ण प्रयोग किया जाता है. नपुंसकता में पौधे की जड़ों का एक चम्मच चूर्ण दूध के साथ प्रतिदिन सेवन करने से काफी लाभ मिलता है. आधा चम्मच अश्वगंधा सोने से पहले एक गिलास गर्म दूध के साथ लें, इससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है.

Is Ashwagandha good for men?

शरीर में कम्पन हो तो अश्वगंधा के सेवन से यह ठीक होगा. अश्वगंधा एक प्राकृतिक औषधि है जो अपने शक्तिवर्द्धक गुणों के लिए मशहूर है. चाहे तो इसकी पत्तियों को पीसकर या जड़ों को उबालकर भी उपयोग में ला सकते हैं. अश्वगंधा के इस्तेमाल के लिए इसमें एक चम्मच चीनी डाल लें. इस मिश्रण को एक जार में डालकर फ्रिज में रख दें और सुबह नाश्ते से करीब 20 मिनट पहले इसका सेवन करें. इस मिश्रण को दोपहर और रात में भी लें. रात में इस मिश्रण को एक गिलास गर्म पानी के साथ लेना है।

महिलाओ के लिए फायदेमंद है अश्वगंधा

महिलाओं में थायराइड में अश्वगंधा का इस्तेमाल कारगर होता है इसके लिए 200 से 1200 मिलीग्राम अश्वगंधा चूर्ण को चाय के साथ मिलाकर लें.

ऐसे होती है अश्वगंधा की खेती

भारत के पश्चिमोत्तर भाग राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, पंजाब, गुजरात, उत्तर प्रदेश एवं हिमाचल आदि प्रदेशों में अश्वगंधा की खेती होती है. राजस्थान और मध्य प्रदेश मे अश्वगंधा की खेती बड़े स्तर पर हो रही है. इन्हीं क्षेत्रों से पूरे देश में अश्वगंधा की आपूर्ति की जा रही है।
भारत में अश्वगंधा की जड़ों का उत्पादन प्रतिवर्ष लगभग 2000 टन से  भी अधिक है. अच्छे जल निकास वाली बलुई दोमट और हल्की लाल मृदा जिसका पीएच मान 7.5-8 हो, ऐसी जमीन अश्वगंधा की व्यावसायिक खेती के लिए उपयुक्त होती है. पौधे के अच्छे विकास के लिए 20-35 डिग्री तापमान 500-750 मिमी वार्षिक वर्षा होना आवश्यक है. पौधे के बढ़ने के समय शुष्क मौसम एवं मृदा में प्रचुर नमी का होना सही रहता है.

शरद ऋतु में 1-2 वर्षा होने पर जड़ों का विकास अच्छा होता है. पर्वतीय क्षेत्रों की अनुपजाऊ भूमि पर भी इसकी खेती सफलता से की जा सकती है. शुष्क कृषि के लिए भी अश्वगंधा की खेती उपयुक्त है. अगस्त सितम्बर माह में जब वर्षा हो जाए, उसके बाद 10-12 किग्रा बीज प्रति हैक्टेयर की दर से बुआई पर्याप्त होती है.



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