Types of Hindu Marriage in Hindi
हिन्दु
विवाह के प्रकार
हिन्दु
धर्म में विवाह का बहुत महत्व माना गया है. विवाह को मानव जीवन के सोलह संस्कारों
में से एक माना जाता है. पूरे देश में हिंदु विवाह के रीति रिवाज में संस्कृति,
क्षेत्र और जाति के आधार पर भिन्नता पाई जाती है लेकिन शास्त्रोक्त
विवाह विधि पूरे भारत को एक सूत्र में जोड़ती है. यहां हम हिंदु विवाह की
शास्त्रोक्त विधि, हिंदु समाज में विवाह के प्रकार और आजादी
के बाद बने सरकारी कानून हिंदु विवाह अध्ययन की जानकारी मुहैया करवाने का प्रयास
कर रहे हैं.
हिंदु
विवाह के प्रकार
धर्म
सूत्रों और गृह्य सूत्रों में से एक आश्वलायन में हिंदु विवाह के आठ प्रकार बताए
गए हैं. आपस्तम्ब धर्मसूत्र में विवाह के केवल 6 प्रकारों का उल्लेख मिलता है. वेद
ऋषि वशिष्ट भी सिर्फ 6 तरह के विवाहों का ही उल्लेख करते हैं. राक्षस विवाह और
पैशाच विवाह का उल्लेख बहुत कम मिलता है. मनु स्मृति में भी इन आठ विवाहों का
उल्लेख मिलता है लेकिन वह काफी बाद में लिखा गया गया है और संभव है कि आश्वलायन से
इसे ज्यों का त्यों ले लिया गया हो.
1.
ब्रह्म विवाह
2.
प्राजापत्य विवाह
3.
आर्ष विवाह
4.
दैव विवाह
5.
गान्धर्व विवाह
6.
आसुर विवाह
7.
राक्षस विवाह
8.
पैशाच विवाह
इसके
अतिरिक्त किसी हिंदु शास्त्र में इन प्रकारों का एक साथ वर्णन नहीं मिलता है. यहां
इन विवाहों के बारे में थोड़ी जानकारी देना जरूरी है.
ब्रह्म
विवाह
ब्रह्म
विवाह सर्व स्वीकार्य और श्रेष्ठ विवाह है, जिसमें
कन्या का पिता एक सुयोग्य वर खोजकर अपनी कन्या का विवाह उसके साथ सम्पन्न करवाता
है. इस विवाह को सर्वश्रेष्ठ इसलिए माना जाता है क्योंकि इसमें किसी भी प्रकार की
शर्त नहीं लगाई जाती है और वर की योग्यता एक मात्र मापदण्ड होता है.
प्राजापत्य
विवाह
प्राजापत्य
विवाह को हिंदु विधि में श्रेष्ठ विवाह की संज्ञा दी गई है. आजकल प्रचलित विवाह
दरअसल प्राजापत्य विवाह का ही विस्तार है. इस विवाह में धन का लेन—देन नहीं लिया जाता है और विवाह के समय स्त्री और पुरूष दोनों पूरे समाज
के सामने यह प्रण लेते हैं कि वे आजीवन धर्म के अनुसार आचरण करते हुए एक दूसरे का
साथ निभाएंगे. इस विवाह में स्त्री और पुरूष को दूसरा विवाह करने की अनुमति नहीं
होती है और न ही पुरूष को सन्यास और वानप्रस्थ की अनुमति होती है, उसे आजीवन गृहस्थ ही रहना होता है.
आर्ष
विवाह
मनु
स्मृति में इस विवाह का उल्लेख जिस तरह मिलता है, उससे पता चलता है कि आसुर विवाह को निंदनीय माने जाने के कारण यह विवाह
विधि उसके बाद प्रचलित हुई होगी. आसुर विवाह में जहां कन्या का पिता धन के बदले
अपनी कन्या का विवाह करता था, आर्ष विवाह में गाय और बैल के
एक जोड़े के बदले में अपनी कन्या का विवाह कर देता था. ऐसा जान पड़ता है कि धन
लेने की निंदा होने के कारण बाद में गाय और बैल को धन के टोकन की तरह उपयोग में
लिया जाने लगा. इस तरह के विवाह के भी ज्यादा उदाहरण नहीं मिलते हैं.
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दैव
विवाह
दैव
विवाह में पिता अलंकारों से सुशोभित कन्या को किसी यज्ञपाठी पुरोहित को कन्यादान
में देता था. इस विवाह को देवताओं के यज्ञ कर्म के दौरान सम्पन्न किया जाता था. इस
विवाह को भी श्रेष्ठ माना गया है लेकिन अब इस तरह के विवाह नहीं होते हैं. दैव
विवाह का कोई शास्त्रोक्त उदाहरण नहीं मिलता है.
गान्धर्व
विवाह
गान्धर्व
विवाह को हिंदु रीति में श्रेष्ठ माना गया है क्योंकि इसमें वर और वधु अपनी इच्छा
से ईश्वर को साक्षी मानकर एक दूसरे का वरण करते हैं. इस प्रकार के विवाह में समाज
के स्थान पर व्यक्ति प्रधान हो जाता है और समाज की इच्छा की जगह उनकी पसंद
सर्वोपरी हो जाती है. इस तरह के विवाह को सभी स्मृतियों ने श्रेष्ठ बताया है. इस
विवाह का नामकरण हिमालय के उत्तरी क्षेत्र में रहने वाली गन्धर्व जाति पर पड़ा है
क्येांकि उनके समाज में इसी आधार पर विवाह होते थे. दुष्यन्त और शकुन्तला का विवाह
प्राचीन काल में हुए गंधर्व विवाह का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है.
आसुर
विवाह
आसुर
विवाह को राक्षस विवाह और पैशाच विवाह से श्रेष्ठ समझा जाता था लेकिन इसे भी
अच्छी दृष्टि से नहीं देखा जाता था. इस विवाह में विवाह का इच्छुक पुरूष कन्या के
पिता को धन देकर कन्या से विवाह करता था. दरअसल यह कन्या विक्रय का एक कारण था
इसलिए समाज का अग्रणी तबका इस विवाह को अच्छी नजरों से नहीं देखता था. इस तरह के
ऐतिहासिक उदाहरणों की कमी है, जहां इस तरह
के विवाह हुए हों.
राक्षस
विवाह
क्षत्रियों
और राजाओं में इस विवाह का प्रचलन अधिक था इसलिए कई स्मृतियों में इसे क्षात्र
विवाह भी कहा गया है. इस विवाह में स्त्री के साथ उसकी इच्छा के बिना बलपूर्वक
विवाह किया जाता है. अक्सर युद्ध में विजित राजाओं की पुत्रियों के साथ राक्षस
विवाह करने की परम्परा विकसित हो गई थी ताकि राज्य पर अधिकार के साथ ही उसके
परिवार पर भी अधिकार कर लिया जाए. अर्जुन और सुभद्रा का राक्षस विवाह ही हुआ था
यद्यपि सुभद्रा अर्जुन से प्रेम करती थी लेकिन अर्जुन ने उन्हें अपने बाहुबल से
प्राप्त किया था.
पैशाच
विवाह
पैशाच
विवाह का ज्यादातर सूत्रों मे कोई उल्लेख नहीं मिलता है क्योंकि इसकी सामाजिक
स्वीकार्यता बहुत कम थी और मनु स्मृति तथा उसके बाद की स्मृतियों में इस विवाह के
इस प्रकार को स्वीकार तो किया गया है लेकिन उनकी घोर निंदा की गई है. मनु ने लिखा
है कि नींद में सोती हुई, मद्यग्रसित या
बेहोश कन्या के साथ कोई पुरूष छल के साथ एकान्त में उससे उपभोग करता है तो उस
विवाह को पैशाच विवाह कहते हैं. इसे बहुत ही निम्न कोटी का और सबसे अधिक पापयुक्त
माना गया है इसलिए इसका नामकरण भी इसी तरह किया गया है कि सामाजिक रूप से इस विवाह
का निषेध किया जा सके. याज्ञवलक्य स्मृति में तो इसकी निंदा करते हुए लिखा गया है
कि पैशाच: कन्यकाछलात्। यानि पैशाच विवाह कन्या के साथ छल है.
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