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How to climb Mount Everest in Hindi - कैसे करें माउंट एवरेस्ट फतह

क्या आपमें है माउंट एवरेस्ट फतह का हौसला 

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        दुनिया भर के पर्वतारोहियों का सबसे बड़ा सपना होता है- माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई. लोग कई-कई साल तक माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने की तैयारी करते हैं ताकि एक दिन वे दुनिया की सबसे ऊंची जगह पर खड़े होकर धरती को कुछ पल निहार सकें. हर साल हजारों लोग माउंट एवरेस्ट के बेस कैम्प पहुंचते हैं और सैकड़ों पर्वतारोही इस सबसे ऊंची यात्रा पर निकलते हैं. लेकिन एवरेस्ट तक वही पहुंचते हैं जिनमें एवरेस्ट जैसा हौसला होता है. अगर आप भी माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई पर जाना चाहते हैं तो यह लेख सिर्फ आपके लिए ही है. 

Where is Mount Everest

माउंट एवरेस्ट कहां स्थित है

       माउंट एवरेस्ट दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी है, जो हिमालय पर्वत शृंखला में स्थित है. यह चोटी नेपाल (सागरमाथा जोन) और चीन (तिब्बत) की सीमा पर स्थित है. 

How tall is Mt Everest माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई कितनी है 

       माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई को लेकर कई देशों की अलग-अलग राय है. आम तौर पर माना जाता है कि माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई समुद्री सतह से 8848 मीटर यानी 29029 फुट है. हालांकि चीन का दावा है कि माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई चार मीटर कम यानी 8844.43 मीटर है. चीन एवरेस्ट की ऊंचाई को रॉक हाइट तक मानता है जबकि नेपाल जमी हुई बर्फ को जोड़ते हुए एवरेस्ट की ऊंचाई की गणना करता है. वैज्ञानिकों का मानना है कि एवरेस्ट पर्वत 4 मिलीमीटर प्रति वर्ष के हिसाब से आज भी बढ़ रहा है.


माउंट एवरेस्ट का नामकरण

        माउंट एवरेस्ट का नामकरण भारत का पहला मानचित्र तैयार करने वाले जॉर्ज एवरेस्ट के नाम पर किया गया है. कहा जाता है कि जॉर्ज एवरेस्ट ने ही एवरेस्ट की ऊंचाई को मापा था. लेकिन वास्तविकता इसके विपरीत है. वास्तव में जॉर्ज एवरेस्ट के सहयोगी रहे बंगाली गणितज्ञ राधानाथ सिकदर ने त्रिकोणमिति का उपयोग करके सबसे पहले एवरेस्ट की ऊंचाई की बिल्कुल ठीक गणना की थी. 
        कोलकाता में भारतीय सर्वेक्षण विभाग में काम करते हुए राधानाथ सिकदर ने ही अपने बॉस कर्नल एंड्रयू स्कॉट वॉ के निर्देश पर बर्फ से ढकी चोटी XV की ऊंचाई मापने का काम किया और पाया कि यह पृथ्वी की सबसे ऊंची चोटी है. सिकदर ने अपनी रिपोर्ट कर्नल वॉ को सौंपी. कर्नल वॉ ने अपने पुराने अधिकारी जॉर्ज एवरेस्ट के नाम पर चोटी का नाम रखा. 1856 में किए गए इस सर्वे में एवरेस्ट की ऊंचाई 8840 मीटर यानी 29,002 फुट मापी गई थी. 
        माउंट एवरेस्ट को नेपाली भाषा में सागरमाथा और तिब्बती भाषा में चोमोलुंग्मा या चीनी भाषा में क्योमोलांगमा कहा जाता है. संस्कृत में माउंट एवरेस्ट के लिए देवगिरि नाम भी प्रचलित है. 

माउंट एवरेस्ट तक जाने का रास्ता 

        ज्यादातर पर्वतारोही नेपाल की तरफ से एवरेस्ट पर चढ़ाई करते हैं. नेपाल की राजधानी काठमांडू से लुकला तक का रास्ता फ्लाइट से तय किया जाता है. उसके बाद करीब 10 दिन तक ट्रेकिंग करने के बाद पर्वतारोही एवरेस्ट बेस कैम्प पर पहुंचते हैं, जिसकी ऊंचाई करीब 17,500 फुट है. अक्सर पर्वतारोही बसंत के मौसम में ही बेस कैम्प पहुच जाते हैं और कई सप्ताह वहां रहकर ऊंचाई वाले स्थान के मौसम से तालमेल बिठाते हैं. इसके बाद हर वर्ष मई की शुरुआत में एवरेस्ट पर पर्वतारोहण की शुरुआत होती है. 


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How many people climb Everestकितने लोग माउंट एवरेस्ट पर जाते हैं 

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        पर्वतारोहियों में एवरेस्ट फतह करने की महत्वाकांक्षा दिनों-दिन बढ़ती ही जा रही है. आम तौर पर हर वर्ष करीब 600 लोग एवरेस्ट के शिखर पर पहुंचते हैं. जितने लोग एवरेस्ट पर चढ़ाई का परमिट हासिल करते हैं, उनमें से करीब आधे ही वास्तव में शिखर तक जाते हैं. एवरेस्ट पर जाने वाले लोगों में दो-तिहाई लोग दक्षिण की ओर से यानी नेपाल से होकर चढ़ाई करते हैं. बाकी बचे हुए लोग उत्तर में तिब्बत की ओर से चढ़ाई करते हैं. ज्यादातर लोग मई के क्लाइम्बिंग सीजन में ही एवरेस्ट पर जाते हैं. 

How many people have climbed Everest अब तक कितने लोग माउंट एवरेस्ट पर जा चुके हैं

        हिमालयन डेटाबेस के अनुसार जून 2017 तक 4,833 लोग 8 हजार 306 बार माउंट एवरेस्ट पर जा चुके हैं. इनमें से 3973 लोग गाइड या शेरपा हैं.  अब तक 63 प्रतिशत पर्वतारोहण दलों में से कम से कम एक सदस्य एवरेस्ट पर पहुंचने में सफल रहा है. महिलाएं 539 बार एवरेस्ट शिखर तक पहुंची हैं. 


Bodies on Everest एवरेस्ट पर कितने शव दबे हैं

        अब तक करीब 300 लोगों की मौत एवरेस्ट पर चढ़ाई के दौरान हुई है. अनुमान है कि इनमें से करीब दो सौ लोगों के शव अब भी एवरेस्ट की बर्फ में ही दबे हुए हैं. इनमें से आधी से अधिक 168 मौतें बिना बाहरी ऑक्सीजन सपोर्ट के एवरेस्ट पर चढ़ने का प्रयास करने के कारण हुई हैं. 73 लोगों की मौत एवरेस्ट शिखर से उतरते हुए हुई है. वास्तव में आठ हजार मीटर ऊपर जाने के बाद के क्षेत्र को डेथ जोन कहा जाता है, जहां परिस्थितियाँ काफी खतरनाक होती हैं. यदि इस क्षेत्र में किसी पर्वतारोही की मृत्यु हो जाती है तो उसे वहीं छोड़ दिया जाता है. उनका मृत शरीर माउंट एवरेस्ट की बर्फ में हमेशा के लिए दफ्न हो जाता है. कई ऐसे शव आने वाले सालों में पर्वतारोहियों के लिए लैंडमार्क यानी दिशासूचक बन जाते हैं. एवरेस्ट पर्वत के पूर्वोत्तर रिज रूट पर एक पर्वतारोही सेवांग पालजोर की मौत हो गई थी. उसने हरे रंग के जूते पहन रखे थे. पर्वतारोही इस जगह को अब ग्रीन बूट के नाम से पहचानने लगे हैं. 
        सबसे अधिक 77 मौतें हिमस्खलन से, 67 मौतें नीचे गिरने के कारण और करीब 30-30 मौतें हाई एल्टीट्यूड सिकनेस और अत्यधिक कम तापमान से हुई समस्याओं के कारण हुई हैं. शवों को नीचे लाने में होने वाले भारी खर्च के कारण बहुत कम शवों को एवरेस्ट से नीचे लाया जाता है. 

Causes of Death on Everestएवरेस्ट पर मौतों का कारण 

        एवरेस्ट पर लोगों की मृत्यु मुख्यतः बेहद कम तापमान, अधिक ऊंचाई के कारण होने वाली दिक्कतों, साथ ले जाई गई ऑक्सीजन खत्म हो जाने या अचानक आये बर्फीले तूफान में फंस जाने के कारण होती है. बहुत सारे पर्वतारोही भूस्खलन या हिमस्खलन या हार्ट फेल होने के कारण भी जान गंवा बैठते हैं. 
       ऊंचाई बढ़ने के कारण सिरदर्द, जी मिचलाना और शारीरिक कमजोरी जैसी परेशानियां होने लगती हैं. डेथ जोन में हाइ-एल्टीट्यूड सेरेब्रल एडेमा हो सकता है, जिसके कारण मांसपेशियों पर नियंत्रण खोना, आवाज लड़खड़ाना और भ्रम जैसी समस्याएं होने लगती हैं. डेथ जोन में हाई-एल्टीट्यूड पल्मोनरी एडेमा भी हो सकता है जिसके कारण खांसी और सांस लेने में तकलीफ हो सकती है.  हिमदाह (Frostbite),  हिम अंधता जिसे Snow Blindness या Photokeratitis भी कहते हैं और हाइपोथर्मिया के कारण भी कई लोगों की मौत हो जाती है.

Weather at Mount Everest in Hindi माउंट एवरेस्ट का मौसम 

        माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने और स्वयं को इसके अनुकूल बनाने में करीब 40 दिन लग जाते हैं. इस बेहद दुर्गम सफर में प्रकृति ही सबसे बड़ी चुनौती है. यहां हवा की गति 321 किलोमीटर प्रतिघंटा तक हो जाती है और तापमान गिरकर माइनस 80 डिग्री फारेनहाइट तक पहुंच सकता है. High Altitude Sickness ऊँचाई पर होने वाली कमजोरी,  तेज हवाएं और ऑक्सीजन की कमी से ऊपर चढ़ने भारी मुश्किल पैदा होती है. इस क्षेत्र में जैसे-जैसे आप ऊपर चढ़ते हैं, ऑक्सीजन की कमी होती जाती है. 

Cost to climb Mount Everest in Hindi माउंट एवरेस्ट पर जाने का खर्च

         अगर आप माउंट एवरेस्ट पर जाने का विचार बना रहे हैं तो दो चीजें सबसे ज्यादा जरूरी हैं, पैसा और फिटनेस. नेपाल सरकार के लिए पर्वतारोहण कमाई का एक बड़ा स्रोत है. नेपाल सरकार माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई का परमिट देने के लिए करीब 11 हजार अमेरिकी डॉलर प्रति व्यक्ति परमिट फीस लेती है. साथ ही आपको एक स्थानीय शेरपा भी साथ ले जाना होता है. वेस्टर्न गाइड्स को ले जाना महंगा पड़ता है.


        अगर आप अनुभवी गाइड लेकर जा रहे हैं तो खर्च अधिक होता है, वहीं कई लोग 3-4 के ग्रुप में एक गाइड लेकर जाते हैं, उनका खर्च कम आता है. लेकिन इससे रिस्क भी बढ़ जाता है. इसके अलावा काठमांडू तक पहुंचने का यात्रा खर्च, स्नो शूट, ऑक्सीजन, जरूरी उपकरण, बर्फ पर पहनने के जूते, नामचे बाजार जैसे बेस कैम्प पर कई सप्ताह की कैम्पिंग और खाने का खर्च अलग है. 
        कुल मिलाकर माउंट एवरेस्ट पर जाने का कम से कम खर्च 30 हजार डॉलर आता है. जैसे-जैसे आप सुविधाओं में बढ़ोतरी करेंगे तो यह खर्च एक लाख डॉलर तक हो सकता है. तिब्बत के रास्ते माउंट एवरेस्ट पर जाने का खर्च नेपाल से करीब 2-3 हजार डॉलर कम आता है. 
        कई बार एवरेस्ट सीजन खराब मौसम के कारण जल्दी खत्म हो जाता है. ऐसे में हजारों डॉलर खर्च करने के बाद भी एवरेस्ट शिखर पर पहुंचने का आपना सपना अधूरा रह सकता है. ऐसे में इवेकुएशन इंश्योरेंस और ट्रिप कैंसलेशन भी जरूरी होता है. 

क्या अब भी आप एवरेस्ट पर जाना चाहते हैं

        एवरेस्ट की चढ़ाई बहुत मुश्किल है फिर भी प्रोफेशनल से लेकर शौकिया पर्वतारोही तक सभी एक बार माउंट एवरेस्ट के सर्वोच्च शिखर पर जाना चाहते हैं. अगर एवरेस्ट फतह का रोमांच आपको आकर्षित करता है, तो पहले आप पर्वतारोहण का जरूरी अनुभव हासिल कीजिए और अपनी बॉडी को एवरेस्ट की कठोर परिस्थितियों को झेलने में सक्षम बनाइए. जब आप काठमांडू की फ्लाइट में यात्रा कर रहे होते हैं तो आपको अपनी खिड़की से एवरेस्ट का नजारा दिख सकता है. मतलब साफ है, एवरेस्ट पर चढ़ना मतलब विमान उड़ने की ऊंचाई तक चढ़ना, जो नौसिखियों का खेल नहीं है. सबसे जरूरी बात एक बार फिर, एवरेस्ट फतह के लिए एवरेस्ट जैसा हौसला होना चाहिए. 


Interesting facts about Mount Everestमाउंट एवरेस्ट से जुड़ी रोचक जानकारी 

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एडमंड  हिलेरी एवं शेरपा तेनजिंग नोर्गे
  • माउंट एवरेस्ट पर 29 मई 1953 को पहली बार न्यूजीलैंड के एडमंड हिलेरी और नेपाली मूल के भारतीय नागरिक शेरपा तेनजिंग नोर्गे चढ़े थे. सबसे पहले हिलेरी ने शिखर पर कदम रखा. इसलिए सबसे पहले एवरेस्ट पर जाने वाला व्यक्ति एडमंड हिलेरी को माना जाता है. 
  • जापान की जुनको तबेई माउंट माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली महिला थीं. वे 22 सितम्बर 1939 को एवरेस्ट पर पहुंचीं. 
  • बछेंद्री पाल 1984 में एवरेस्ट पर पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला बनीं. 
  • वर्ष 2018 में नेपाल के कामी रीता ने माउंट एवरेस्ट पर सर्वाधिक 22 बार पहुंचने का रिकार्ड बनाया है. 
  • 13 साल के  जॉर्डन रोमेरो माउंट एवरेस्ट पर पहुंचने वाले सबसे कम उम्र के शख्स हैं.  
  • 80 वर्ष के यूइचिरो मियूरा दुनिया के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति हैं जो एवरेस्ट की चोटी तक पहुंचे हैं.

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