Essay on Gandhi in hindi language / महात्मा गांधी पर निबंध
महात्मा गांधी संसार की एक अनुपम विभूति थे. गीता में कहा गया है कि जब-जब धर्म और अधर्म का बोलबाला होता है तो तभी कोई महान विभूति जन्म लेकर अधर्म का नाष और धर्म की रक्षा करती है. महात्मा गांधी भी उन्हीं महान विभूतियों में से एक थे. उनके जन्म के समय भारत भूमि पर विदेषियों का राज था और चारों ओर अन्याय और अत्याचार की धूम थी.
गांधी जी का जन्म 2 अक्टूबर 1866 को गुजरात के काठियावाड़ में पोरबंदर नामक स्थान पर हुआ. महात्मा गांधी के पिता का नाम करमचंद गांधी था और उनका स्वयं का नाम मोहनदास था. गांधी उनके वंष का उपनाम है. इस प्रकार गांधी जी का पूरा नाम मोहन दास करमचंद गांधी था. गुजरात की प्रथा के अनुसार पिता का नाम भी पुत्र के साथ लिया जाता है. गांधी जी की माता का नाम पुतली बाई था. उनकी माता बड़ी धार्मिक प्रवृति की थी, जिसका सीधा प्रभाव गांधी जी के संस्कारो पर पड़ा.
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महात्मा गांधी ने 1887 में मैट्रिक की परीक्षा पास की और 1888 में बैरिस्टर बनने के लिए इंग्लैण्ड चले गए क्योंकि भारत में तब विवाह कम उम्र में ही हो जाया करते थे इसी कारण गांधी जी का विवाह 13 वर्ष की उम्र में कस्तुरबा से हो गया था. जिस समय वे इंग्लैण्ड के लिए रवाना हुए, उनकी मां पुतली बाई ने उन्हें विदेष जाकर पूर्णतया भारतीय जीवन के नियमों के पालन की शपथ दिलाई. मां के आज्ञाकारी गांधी जी ने अपनी प्रतिज्ञा का पालन किया और इंग्लैण्ड में रहते हुए उन्होंने बड़ा सात्विक जीवन व्यतीत किया.
इंग्लैण्ड में 3 वर्ष अध्ययन करने के बाद 1891 में गांधी जी भारत लौट आए. इसी बीच गांधी जी की मां का देहान्त हो गया. भारत लौट कर गांधी जी ने बंबई में वकालत करना शुरू किया लेकिन अपनी संकोची और सत्यवादी प्रकृति के कारण वकालत जैसे पेषे में वे सफलता प्राप्त न कर सकें. अनेक प्रयास करने के बाद भी वे इस पेषे द्वारा आजीविका हासिल करने में असमर्थ रहे.
सौभाग्य से सन् 1893 में उन्हें मनवांछित कार्य मिला. उन्हें पोरबंदर की एक फर्म ने 40 हजार पौण्ड के दावे की पैरवी के लिए गांधी जी को दक्षिण अफ्रिका जाना पड़ा. दक्षिण अफ्रिका में काले गोरे के भेद भाव की समस्या बड़ी विकट थी. कोई भी काला आदमी गोरे के साथ न सफर कर सकता था और न किसी भूमि का मालिक हो सकता था. न बिना आज्ञा प्राप्त किए रात्रि 9 बजे के बाद घर से निकल सकता था. रहन-सहन, खान-पान, पारम्पिरक व्यवहार में भी काले व्यक्ति को बड़ा हीन और अपमानित जीवन व्यतीत करना पड़ता था. गांधी जी भारतीयों के इस अपमान को सहन नहीं कर सके. एक दिन कचहरी में पगड़ी पहन कर जाने के कारण बड़ा अपमानित किया गया. इसी घटना को लेकर दक्षिण अफ्रिका में गांधी जी ने गोरों के विरूद्ध एक आंदोलन छेड़ दिया.
उन्होंने मानव-मानव की एकता व समानता का सत्य पक्ष अपनाकर गोरों के अत्याचार को दूषि, न्याय विरूद्ध और अनैतिक बताया. 20 वर्ष महात्मा गांधी को इसी आंदोलन में व्यतीत करने पड़े. इन वर्षों में गांधी जी ने जीवन में कठोर यातनाओं का सामना किया. उन्हें मार तक सहनी पड़ी और कूड़े-करकट तथा मैली टोकरियां सिर पर उठानी पड़ी लेकिन वे अपने उद्देष्य की प्राप्ति के लिए अंत तक अड़े रहे. दक्षिण अफ्रिका में रंग भेद के कारण किए गए अत्याचारों तथा कानून के विरूद्ध गांधी जी ने सत्याग्रह छेड़ दिया. अंत में गांधी जी को सफलता मिली. दक्षिण अफ्रिका की अद्भुत सफलता ने गांधी जी के व्यक्तित्व को एकदम चमका दिया. सन् 1914 में वे भारत लौटे तो भारतवासियों ने गांधी जी का हार्दिक स्वागत किया.
उसी दौरान सन् 1914 में यूरोप में पहला विश्व युद्ध आरंभ हो गया. गांधी जी ने भारतीय नेताओं से मिलकर देश की परिस्थितियों को भली भांति समझा. उन्होंने भारत की विविध परिस्थितियों को समझा और उनको यथा संभव हल करने का प्रयत्न किया. युद्ध में इंग्लैण्ड की खूब सहायता की क्योंकि अंग्रेजों ने भारत को वचन दिया था कि वे यदि युद्ध में जीत जाएंगे तो भारत को स्वतंत्र कर देंगे लेकिन युद्ध की समाप्ति के बाद स्वतंत्रता की जगह भारत को जलिया वाला बाग जैसे क्रूर हत्याकांड देखने को मिले. गांधी जी की आत्मा इस कांड से बड़ी आहत हुई. उन्होंने 1920 में असहयोग आंदोलन छेड़ कर भारतीयों से आग्रह किया कि वे अंग्रेज शासन को असफल बनाने में पूर्ण सहयोग दें.
गांधी जी के उत्साह, साहस और आत्मबल ने सारे देशवासियों को नींद से जगा दिया. देष ने इस आंदोलन में गांधी जी का पूर्ण सहयोग किया. विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार हुआ. सवदेशी का प्रचार हुआ. सभी नेताओं ने खुद खादी पहनने का प्रण लिया. बड़े-बड़े पदाधिकारियों ने अंग्रेजों द्वारा दिए गए खिताब त्याग दिए. स्कूल काॅलेजों के विद्यार्थी पढ़ाई-लिखाई छोड़कर इस आंदोलन में शामिल होने लगे. इसी आंदोलन के कारण गांधी जी को अनेक बार जेल की कठोर यातनाएं सहन करनी पड़ी लेकिन उन्होेंने अपने शरीर की चिंता न कर दिन-रात बड़ी लगन से स्वतंत्रता संग्राम में देश का नेतृत्व किया. उनकी अहिंसा और सत्य में जादू सा बल था. शासकों को उनके दृढ़ व्यक्तित्व के आगे झुकना पड़ा और देश स्वतंत्र हो गया.
महात्मा गांधी जी बड़े दूरदर्शी नेता थे. उन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए नैतिक, सामाजिक, आर्थिक जैसी सभी परिस्थितियों में सुधार किया. हिन्दु-मुस्लिम एकता, अछूतों का उद्धार, शराब आदि मादक पदार्थों का निषेध, खादी का प्रचार, महिला षिक्षा, तप, त्याग और शारीरिक परिश्रम पर खूब बल दिया. गांधी जी की सबसे बड़ी महानता यह थी कि जिस बात के लिए वे दूसरे को उपदेश देते थे, वह बात अपने जीवन में पूर्णतया पालन करते थे. उनकी कथनी और करनी एक थी. सत्य और अहिंसा के बल पर प्रभुत्व और साधन सम्पन्न विदेषी सत्ता को जड़ से उखाड़ना कोई छोटी बात नहीं है. संसार के इतिहास में गांधी जी का यह प्रयोग स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा.
15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ. गांधी जी के तप, त्याग, सत्य और अहिंसा का अपूर्व चमत्कार संसार ने अपनी आंखों से देखा.
स्वतंत्रता के बाद हिंदुस्तान में पाकिस्तान से आए शरणार्थियों की समस्या उनके सामने आई. उन्होंने प्राणों की परवाह न करते हुए नोआखली जाकर दोनों ओर के लोगों को समझाने का काम किया. 30 जनवरी 1948 को नाथू राम गोडसे नामक एक व्यक्ति की गोली से बापू का स्वर्गवास हो गया. गांधी जी अपना नस्वर शरीर तो छोड़ गए किन्तु उनका यष युग-युगान्तरों के लिए अमर हो गया.
राजनीतिक नेता के रूप में, समाज सुधारक व धर्म प्रचारक और उच्च महात्मा के तौर पर गांधी जी का व्यक्तित्व बहुत ही आदेश था. उन्होंने हरिजनों के उद्धारे लिए अनेकों प्रयत्न किए. जाति प्रथा के उन्मूलन जैसे अनेक विषयों पर बहुत उत्तम साहित्य लिखा और सक्रिय कार्य किया. भारत वर्ष सदैव उनका ऋणी रहेगा.
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वैष्णव जन तो तेने कहिये जे, पीड़ परायी जाणे रे
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वैष्णव जन तो तेने कहिये जे ...
सकळ लोक मान सहुने वंदे, नींदा न करे केनी रे
वाच काछ मन निश्चळ राखे, धन धन जननी तेनी रे
वैष्णव जन तो तेने कहिये जे ...
सम दृष्टी ने तृष्णा त्यागी, पर स्त्री जेने मात रे
जिह्वा थकी असत्य ना बोले, पर धन नव झाली हाथ रे
वैष्णव जन तो तेने कहिये जे ...
मोह माया व्यापे नही जेने, द्रिढ़ वैराग्य जेना मन मान रे
राम नाम सुन ताळी लागी, सकळ तिरथ तेना तन मान रे
वैष्णव जन तो तेने कहिये जे ...
वण लोभी ने कपट- रहित छे,काम क्रोध निवार्या रे
भणे नरसैय्यो तेनुन दर्शन कर्ता, कुळ एकोतेर तारया रे
वैष्णव जन तो तेने कहिये जे ...
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