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वट सावित्री व्रत कथा Vat Savitri Katha in Hindi

वट सावित्री व्रत कथा Vat Savitri Katha in Hindi 

        वट सावित्री व्रत को  हिन्दू धर्म में सौभाग्य देने वाला और संतान की प्राप्ति में सहायक व्रत माना मानते है. हिंदी पंचांग के अनुसार  ज्येष्ठ मास में वट सावित्री का व्रत किया जाता है.

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वट सावित्री व्रत महत्व 

        वट सावित्री व्रत में वट वृक्ष का बहुत महत्व होता है वट वृक्ष बरगद के  पेड़ को कहते है.पुराणों के अनुसार बरगद के पेड़ में तीनों देव ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है. इसलिए इस पेड़ की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण  होती हैं. इस पेड़ में शाखाएं काफी लम्बी और घनी होती है. इन शाखाएं को लोकाचार में सावित्री देवी का रूप माना जाता है.

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वट सावित्री व्रत कथा

        एक राजा के सात पुत्रों में छोटा ही छोटा पुत्र निस्संतान था. और इस कारण उसकी बहू का उतना आदर सत्कार नहीं था, जितना और बहुओं का था. बेचारी का मन उदास रहता क्योंकि उसका पति भी उसका आदर नहीं करता था. उसको जेठानियां ताने मारती पर एक दिन  उसकी दासी ने एक उपाय सुझाया और चारों और यह खबर फैला दी कि कुवरंआनी जी को आशा  है अर्थात वे गर्भवती है. कुंवरानी ने इस झूठ के लिये गुस्से में दासी से कुछ बुरा भला भी कहा पर दासी  ने उसकी बात नहीं मानी और उल्टा कुवरंआनी को ही  चुप रहने को कहा. बेचारी चुप रहती. दासी(सेवा करनेवाली स्त्री) ने उसका बाहर जाना भी बन्द करवा दिया. 



        बात की बात में नौ महीने बीत गये. दासी ने दाई को बुलाया और उसे एक सोने का टका देकर कहा कि राजा को लड़का होने की खबर दे दे. दाई ने ऐसा ही किया. सब खुश हो गये पर कुंवररानी इस झूठ के करने मन ही मन दुःखी थी. दासी ने छठी पूजन  व कुआं (जलवा) पुजवाने का दस्तूर भी करवाया और भी जो  जरूरी नेक करवाये गये. 

        दासी ने पण्डित जी को बुलवा कर सोने का टका (मुद्रा) दिया और अरज की कि महाराज आप राजा से कहे  कि इस बालक के ग्रह योग ऐसे है कि बारह साल तक इसका पिता मुंह न देखे यदि देखे तो उसकी मृत्यु हो जाएगी. पण्डित ने राजा को समझाया और  राजा ने उनकी बात मान ली. इसी तरह समय-समय पर कोई ना कोई नई कहानिया बनाती रही और इस तरह दासी के कह अनुसार ग्यारह साल भी बित गए। और इधर पुरे महल में सबको ये विश्वास था कि लड़का बड़ा हो रहा है. 



        अब दासी ने यह बात चलाई कि लड़के का विवाह करके बहू सहित देखना अच्छा है राज ने यह भी मानकर एक अच्छे ठिकाने पर विवाह पक्का कर दिया. आखिरकार लग्न का दिन भी आ गया. और पूजा के सभी  सभी काम (बान-बनोरे) आदि सभी सम्पन हो गए पर अब तक  लड़के को किसी ने नहीं देखा, बारात चलने की तैयारी हो गयी. कुंवररानी ने सोचा कि अब पोल खुलेगी पर दासी ने कहा आप एकदम चुपचाप देखती रहो. और उसने आटे को गूथ  कर एक पुतला बनाया और कपड़े पहना कर एक पालकी में बैठा दिया और बारात के साथ उस पालकी की निगरानी में चली. आगे जाकर एक गांव के पास एक वट के नीचे कुछ महिलाएं पूजा करके कहानी सुन रही थीं. उस दिन वट पूजन का दिन था. 

        दासी ने वह पालकी वहाँ उतरवा दी और उन स्त्रियों से बाली बहनों आप इस डोले की निगरानी रखें तो मैं भी गांव में जाकर पूजन सामग्री ले आउ और  आप ही के साथ कहानी सुन लूं. स्त्रियों ने कहा अच्छा,और दासी चली गई. पीछे से कुछ कुत्ते आए और उस चून के पुतले को खा गए और पुतले केसारे  कपड़े फाड़ दिये थोड़ी देर में दासी आई और पालकी की तरफ देख रोने चिल्लाने लगी. महिलाओं ने सारी बात जानकर बड़ा दुःख किया पर अब वे क्या करें. दासी ने कहा बहनों अब मैं क्या मुंह दिखाऊं. मैं तो मारी गई. कोई उपाय नहीं था. 



        अपना कलंक धोने के लिये सब महिलाओं ने वट देवता से प्रार्थना की कि हे वट देवता हमने आपकी पूजा सच्चे मने से की है तो यहां एक सुन्दर राजकुमार आ जाये. वट-देवता ने प्रार्थना सुन ली और पालकी में एक बारह साल का सुन्दर राजकुमार दिखाई दिया. सबकी  प्रसन्नता का पार नहीं रहा, दासी की खुशी का तो कोई ठिकाना नहीं था. 

        और फिर सभी ने मिले और बड़ी खुशी से वट देवता की पूजा की और पालकी ले जाकर बारात के डेरे पर खड़ी कर दी. बड़ी धूम-धाम से विवाह के सारे दस्तूर पूरे हुये. बारात वापिस आई. और  धूम धाम वे गाजे बाजे से गांव में लाई गई. राजा ने राजकुमार का पहली बार  मुंह देखा. इसके बाद सबके चेहरे  खिल उठे. राजकुमार की मां ने दासी का बड़ा आदर सत्कार किया और सारी बात पूछो. दासी ने भी उसे सारी बात बताई और उसे वट पूूजा करने का संकल्प करवाया. कुवंरानी ने दासी की बात मान ली. सारे परिवार में आनंद की लहरे थी. और फिर कुवंरानी के आग्रह के बाद राजा ने  नगर में ढिंढोरा पिटवाया कि सब स्त्रियां बड़ पूजन किया करें. तभी से ये परंपरा निरन्तर चल रही है.  

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