कार्तिक करवा चौथ व्रत कथा Kartik Karva Chauth Vrat Katha in Hindi
कार्तिक करवा चौथ व्रत कथा Kartik Karva Chauth Vrat Katha in Hindi
एक साहूकार के सात बेटे और एक बेटी थी. सात भाइयों के बहिन लाड-प्यार में रहती थी. भाई भोजन करते तो बहन के साथ करते. कार्तिक में जब करवा चौथ का व्रत आया तो बहिन ने व्रत रखा.
भाई जब भोजन करने बैठे तो बहन को बुलाया. बहन ने कहा आज मेरा व्रत है. चांद उगने पर भोजन करूंगी. भाइयों ने शाम को सोचा कि हमने तो सुबह भोजन किया था तब भी भूख जोरों से लग आई यह तो सुबह की भूखी है इसे तो और भी ज्यादा भूख लगी होगी.
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ऐसा विचार कर एक भाई ने दीपक जलाकर चलनी से ढक कर उसका प्रकाश दिखा दिया. बहन ने अपनी भाभियों से कहा चलो दर्शन करके अर्ध्य दे लो. भाभियों ने कहा आप जाओ, हमारा चांद अभी नहीं उगा है. जब वो अकेली ही जाकर दर्शन कर अर्ध्य देकर भाइयों के साथ भोजन करने बैठ गई तो पहले ग्रास में सिवाल, दूसरे में बाल और तीसरे में ससुराल का बुलावा आया.
आने वाले ने कहा तुम्हारे कंवर साहब की तबियत ज्यादा खराब है. जल्दी भेजो. तब उनकी मां ने कपड़ों का बन्द थैला खोल कर उसे कपड़े पहनाने के लिए थैले में तीन बार हाथ दिया, तीनों ही बार सफेद वस्त्र हाथ में आया. उसकी मां ने वही पहनाकर एक सोने का टका (मोहर) दिया. जो तुम्हें सुहाग की आशीष देवे उसे यह सोने का टका देकर पल्ले के गांठ दे देना.
आने वाले ने कहा तुम्हारे कंवर साहब की तबियत ज्यादा खराब है. जल्दी भेजो. तब उनकी मां ने कपड़ों का बन्द थैला खोल कर उसे कपड़े पहनाने के लिए थैले में तीन बार हाथ दिया, तीनों ही बार सफेद वस्त्र हाथ में आया. उसकी मां ने वही पहनाकर एक सोने का टका (मोहर) दिया. जो तुम्हें सुहाग की आशीष देवे उसे यह सोने का टका देकर पल्ले के गांठ दे देना.
रास्ते में जो भी मिला वह उसके पैरों मे पड़ती गई. सबने भाई भांजो के सुख का ही आशीर्वाद दिया. चलते-चलते जब उसके ससुराल का दरवाजा आया तो दरवाजे में घुसते ही उसकी छोटी ननद खड़ी थी. वह उसके भी पैरों पड़ी तो ननद ने उसे आशीष दी-सीली हो, सपूती हो, सात पूत की मां हो, मेरे भाई को सुख दे.
ऐसा सुनते ही भावज ने उसे झट सोने का टका दे दिया. वह भीतर गई तो सास ने पीढ़ी नहीं दिया और रोकर बोली मरा पड़ा है. बेचारी देख कर रोने लगी. लोगों ने समझाया बुझाया और उसके किया-कर्म कि तैयारी करने लगे. पर उसने इन सब को रोक दिया.
उसकी सास ने कहा क्या मड़ा सेवेगी ? उसने कहां हां, मैं मडा सेने लूंगी. आप कोई चिन्ता न करें. उसकी जिद पर घर वालों ने एक अलग मकान में उसको रख दिया. बेचारी मडा सेने लगी. दासी आकर बासी-सूखी रोटियां दे जाती, उसी से अपना जीवन चलाती. मंगसिर मास की चौथ आई. बोली-करवो ले, भायाँ प्यारी करवो ले, दिन में चांद उगाणि करवो ले, घणी भुखाली करवो ले.
वह बोली माता मैंने नियम बिगाड़ा तो आप सुधारोगी. मुझे मेरा सुहाग देना पड़ेगा.चौथ माता बोली-मेरे बड़ी पौह की चौथ है उससे अरज करना. पौष की चौथ आई उसने कहा, मेरे से बड़ी माघ की आएगी. इसी तरह अपने से अगली-अगली बताती गई और आखिर आसोज की चौथ आई उसने कहा बाई तेरे पर कार्तिक की चौथ नाराज है.
उसने ही तेरा सुहाग लिया है वह ही वापिस देगी. तू उसके पैर पकड़ लेना. कार्तिक की चौथ आई. उसने गुस्से में भर कर कहा-भरत भाण्डणी करवा ले, भाँया प्यारी करवा ले, दिन में चाँद उगाणी करवा ले, घणी भुखाली करवा ले. पर साहूकार की बेटी उसके पैर पकड़ कर बैठ गई. बोली माता मेरी भूल हो गई, मैंने व्रत बिगाड़ा तो आप सुधारो.
उसकी बिनती देखकर चौथ माता को दया आ गई, वह खुश हो गई. आंखो में से काजल, नाखूनों में से मेंहदी, मांग में से सिंदूर और टीका में से रोली निकाल कर चिटी अंगुली से छींटा दिया. साहूकार का लड़का तुरन्त बैठ गया. बोला खुब नींद आई. उसकी स्त्री बोली ऐसा भी क्या सोना मुझे तो बारह महीने हो गये.
उसने सारी बात उसे बताई. साहूकार का बेटा बड़ा खुश हुआ. उसने कहा चौथ माता का उत्सव करना चाहिए. उसकी स्त्री तुरन्त इन्तज़ाम किया. करवा लिया, कहानी सुनी, चूरमा किया और दोनों पति-पत्नी भोजन कर चौपड़ पास खेलने लगे. दासी आई बासी टुकड़े लेकर, देखे तो दोनों चौपड़ पास खेल रहे है. तुरन्त वापिस गई और उसकी सास से बोली वे तो चौपड़ पास खेल रहे हैं.
उसकी सास ने कहा क्या मड़ा सेवेगी ? उसने कहां हां, मैं मडा सेने लूंगी. आप कोई चिन्ता न करें. उसकी जिद पर घर वालों ने एक अलग मकान में उसको रख दिया. बेचारी मडा सेने लगी. दासी आकर बासी-सूखी रोटियां दे जाती, उसी से अपना जीवन चलाती. मंगसिर मास की चौथ आई. बोली-करवो ले, भायाँ प्यारी करवो ले, दिन में चांद उगाणि करवो ले, घणी भुखाली करवो ले.
वह बोली माता मैंने नियम बिगाड़ा तो आप सुधारोगी. मुझे मेरा सुहाग देना पड़ेगा.चौथ माता बोली-मेरे बड़ी पौह की चौथ है उससे अरज करना. पौष की चौथ आई उसने कहा, मेरे से बड़ी माघ की आएगी. इसी तरह अपने से अगली-अगली बताती गई और आखिर आसोज की चौथ आई उसने कहा बाई तेरे पर कार्तिक की चौथ नाराज है.
उसने ही तेरा सुहाग लिया है वह ही वापिस देगी. तू उसके पैर पकड़ लेना. कार्तिक की चौथ आई. उसने गुस्से में भर कर कहा-भरत भाण्डणी करवा ले, भाँया प्यारी करवा ले, दिन में चाँद उगाणी करवा ले, घणी भुखाली करवा ले. पर साहूकार की बेटी उसके पैर पकड़ कर बैठ गई. बोली माता मेरी भूल हो गई, मैंने व्रत बिगाड़ा तो आप सुधारो.
उसकी बिनती देखकर चौथ माता को दया आ गई, वह खुश हो गई. आंखो में से काजल, नाखूनों में से मेंहदी, मांग में से सिंदूर और टीका में से रोली निकाल कर चिटी अंगुली से छींटा दिया. साहूकार का लड़का तुरन्त बैठ गया. बोला खुब नींद आई. उसकी स्त्री बोली ऐसा भी क्या सोना मुझे तो बारह महीने हो गये.
उसने सारी बात उसे बताई. साहूकार का बेटा बड़ा खुश हुआ. उसने कहा चौथ माता का उत्सव करना चाहिए. उसकी स्त्री तुरन्त इन्तज़ाम किया. करवा लिया, कहानी सुनी, चूरमा किया और दोनों पति-पत्नी भोजन कर चौपड़ पास खेलने लगे. दासी आई बासी टुकड़े लेकर, देखे तो दोनों चौपड़ पास खेल रहे है. तुरन्त वापिस गई और उसकी सास से बोली वे तो चौपड़ पास खेल रहे हैं.
साहूकार की स्त्री को विश्वास नहीं आया. झट ऊपर और देखकर खुश हो गई. पूछा यह क्या बात है ? तब बहू ने सारी बात बताई, सास के पैर पकडे. घर में आनन्द छा गया. बेटों की मां सब कोई बारह चौथ करना. बारह नहीं तो चार तो अपने सात फैरो की शक्ति के लिए जरूर करें. हे चौथ माता सब का सुहाग भाग देना. साहूकार की बेटी की तरह दुःख मत देना.
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