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राफेल लड़ाकू विमान की खासियत, डील और राफेल विमान सौदा घोटाला
राफेल विमान को लेकर भारत और फ्रांस की राजनीति में भूकंप आया हुआ है. राफेल विमानों की खरीद को लेकर हुई अनियमितताओं को लेकर विपक्ष सरकार पर लगातार सवाल उठा रहा है. ऐसे में यह विमान लगातार सुर्खियों में बना हुआ है.
राफेल का इतिहास
राफेल का पूरा नाम dassault aviation डासो राफेल है. राफेल फ्रेंच भाषा का एक शब्द है जिसका अर्थ है हवा का झोंका और आग का गोला. यह दो इंजन वाला एक लड़ाकू विमान है. इसका निर्माण rafale fighter jet company फ्रांस की विमान कंपनी डासो एविएशन dassault aviation ने किया है. यह एक मल्टीपरपज विमान है जिसका उपयोग नौसेना और वायुसेना दोनो द्वारा किया जा सकता है. यानि यह जमीन और पानी के जहाज दोनों जगह से उड़ान भरने और लैण्ड करने में सक्षम है.
राफेल का विकास
राफेल का आधुनिक रूप पिछले तीन दशकों के विकास का परिणाम है. फ्रांस को 1975 मंे जब नये विमानों की जरूरत महसूस हुई तो उसने ऐसे विमानो के विकास पर जोर दिया जो लागत में सस्ते हो और जो उनकी दोनों सेनाओं के काम आ सके. इस दिशा में एक बड़ी सफलता तब मिली जब फ्रांस की कंपनी दासो एविएशन ने यूरापीयन काॅलोबेरेशन फाइटर प्रोजेक्ट में खुद को शामिल किया. इस प्रोजेक्ट में यूरोप के लिए एक काॅम्बेट एअरक्राॅफ्ट तैयार किया जा रहा था. 1981 में विवाद पैदा होने के कारण डासो एविएशन dassault aviation ने इस प्रोजेक्ट से खुद को अलग कर लिया और खुद ही विमान विकसित करने का काम शुरू कर दिया.
राफेल का डिजाइन और प्रोटोटाइप
फ्रांस के पास लड़ाकू विमान बनाने का लंबा अनुभव था. उसके पास जगुआर, मिराज और क्रूसेडर जैसे विमानों का जखीरा था जो अलग-अलग जरूरतों के हिसाब से बनाए गए थे. फ्रासं अब ऐसे विमान को विकसित करना चाहता था जो इन सभी विमानों की खूबियों के साथ हो और हरेक मौसम और परिस्थितियों में लड़ने को तैयार हो.
राफेल का पहला रूप 1982 में सामने आया जिसे एसीएक्स या एक्सपेरिमेंटल काॅम्बेट प्लेन नाम दिया गया. 1986 में हुए पहले फ्लाइट टेस्ट में राफेल ने 36 हजार फीट की ऊंचाई को सफलतापूर्वक छू लिया. उसकी गति 1.3 माक की रही. पहले टेस्ट विमान को लैंड करने के लिए सिर्फ 300 मीटर लंबी हवाई पट्टी की ही जरूरत थी. फ्रांस की यह बहुत बड़ी सफलता थी जिसने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा.
राफेल को कई भूमिकाओं के लिए डिजाइन किया गया था इसलिए समय के साथ परिवर्तन करते हुए इसके कई वर्जन लांच किए गए. राफेल सी को टू सीटर बनाया गया और राफेल बी को सिंगल सीटर बनाया गया. इसका सींगल सीटर विमान अब तक प्रोटोटाइप ही है और कभी भी इसका उत्पादन नहीं किया गया.
राफेल लड़ाकू विमान के विभिन्न वर्जन
राफेल ए- राफेल ए अपनी श्रेणी का पहला विमान था इसे 1986 में विकसित किया गया. राफेल श्रेणी की शुरूआत राफेल ए से ही होती है.
राफेल बी
राफेल बी अपनी श्रेणी का पहला ऐसा लड़ाकू विमान था जिसकी उत्पादन किया गया और आज यह फ्रेंच एअरफोर्स का हिस्सा है।
राफेल सी
इस विमान को पहली बार सिंगल सीट के साथ उतारा गया लेकिन कुछ परेशानियों के कारण इस वर्जन का कभी उत्पादन नहीं किया गया.
राफेल डी
राफेल डी में पहली बार स्टिल्थ तकनीक का उपयोग किया गया ताकि वह रडार की पकड़ में न आ सके. इस विमान के सेमी स्टिल्थ डिजाइन से इसमें काफी हद तक कामयाबी मिली. इस विमान को पहली बार दुनिया मे सामने 1990 में लाया गया था.
राफेल एम
राफेल एम लड़ाकू विमान को फ्रांस की नौसेना के लिए तैयार किया गया था. इसे 2001 से प्रयोग में लाना शुरू किया गया है. पानी के जहाज पर सुरक्षित लैंडिंग के लिए इसके एअर डिजाइन में काफी बदलाव किए गए है और यह अपने एअर फोर्स वर्जन की तुलना में ज्यादा बड़ा है. इस वजह से इसका वजन भी लगभग 500 किलो ज्यादा है. यह एकमात्र गैर अमरीकी विमान है जिसे अमरीकी फ्लीट पर उतरने की स्वीकृति दी गई है. राफेल अमेरिकी फ्लीट कैरियर यूएसएस रूजवेल्ट पर काम करता है.
राफेल एन
इस लड़ाकू विमान को राफेल बीएम के नाम से भी जाना जाता है. यह सिर्फ मिसाइल दागने के लिए डिजाइन किया गया था लेकिन इसकी कीमत और तकनीक समस्याओं की वजह से इसे खारिज कर दिया गया.
राफेल आर
इस वेरियेंट को अभी विकसित किया जा रहा है.
राफेल डीएम
इस टू सीटर वर्जन को मिश्र की वायूसेना के लिए बनाया जाता है.
राफेल ईएम
यह भी मिश्र की वायूसेना के लिए बनाया जाने वाला सींगल सीट वर्जन है.
राफेल डीएच rafale fighter india
राफेल का यह टू सीटर वर्जन भारतीय वायुसेना की जरूरतों को ध्यान में रखकर तैयार किया जा रहा है.
राफेल ईएच rafale fighter india
राफेल लड़ाकू विमान का यह सिंगल सीट वर्जन भारतीय वायु सेना की जरूरतों में ध्यान में रखकर तैयार किया जा रहा है.
राफेल की खासियत rafale aircraft specifications
राफेल लड़ाकू विमान आधुनिक विश्व के सर्वाधिक प्रभावशाली लड़ाकू जेट विमान में से एक माना जाता है. यह विमान दो वर्जन सींगल सीटर और डबल सीटर की श्रेणी में आता है. इसकी लंबाई 15.27 मीटर और इसके पंखों की लंबाई 10.80 मीटर तक होता है. इसकी ऊंचाई 5.34 मीटर और पंखो का फैलाव 45.7 वर्ग मीटर में हैं.
राफेल लड़ाकू विमान के अलग-अलग वर्जन्स का वजन अलग-अलग है. इसके बी टाइप विमान का वजन 10 हजार 300 किलोग्राम, सी टाइप विमान का वजन 9 हजार 850 किलोग्राम और एम टाइम विमान का वजन 10 हजार 600 किलोग्राम तक होता है. ईंधन और पायलट के साथ विमान का वजन 15 हजार किलोग्राम तक पहुंच जाता है. यह 24 हजार 500 किलोग्राम तक वजन लेकर उड़ान भर सकता है.
इसके सिंगल सीटर विमान की ईंधन क्षमता अधिक है और इसमें 4 हजार 700 किलो तक ईंधन भरा जा सकता है जबकि डबर सीटर विमान में 4 हजार 400 किलो तक ईंधन आ सकता है.
अधिक ऊंचाई पर यह 1.8 माक या 1912 किलोमीटर प्रति घंटा तक की अधिकतम गति पकड़ सकता है, जबकि कम ऊंचाई पर इसकी गति 1.1 माक या 1390 किलोमीटर प्रति घंटा तक हो सकती है. एक बार ईंधन लेने के बाद यह 3 हजार 700 किलोमीटर तक उड़ान भर सकता है.
राफेल के हथियार features of rafale fighter plane
राफेल लड़ाकू विमान अपने घातक हथियारों की वजह से दुनिया के सबसे विनाशक एअर क्राफ्टस में से एक है. इसमें जीआईएटी सीरीज की 30 एमएम गन लगी हुई है जो 125 राउण्ड्स दाग सकती है.
हवा से हवा में मार करने के लिए इसमें मैजिक 2 मिसाइल लगी हुई है. साथ इसमें एमडीबीए माइका और एमडीबीए मेटरोर मिसाइले भी लगाई जा सकती है.
हवा से जमीन पर मार करने के लिए इसमें एमडीबीए अपाचे मिसाइल, स्ट्रोम थंडर मिसाइल, हैमर मिसाइल के साथ ही जीबीयू सीरीज के लेजर गाइडेड बम भी लगे हुए हैं.
हवा से ब्रिज और बंकर को तबाह करने के लिए राफेल को एएस 30एल मिसाइल से भी लेस किया गया है. सामान्य प्रयोग के लिए इसमें मार्क 82 बम है जो बड़े इलाके को आसानी से तबाह कर सकते हैं.
राफेल न्यूक्लियर मिसाइल ले जाने में भी सक्षम है. फ्रांस ने इसे अपने न्यूक्लियर मिसाइल एएसएमपी-ए को दागने में सक्षम बनाया है. भारत को मिलने वाले विमान भी न्यूक्लियर मिसाइल दागने में सक्षम होंगे.
इसके अलावा राफेल लड़ाकू विमान थालेस अरबीई-2 राडार, थालेस स्पेक्ट्रा इलेक्ट्रोनिक वारफेयर सिस्टम भी लगा हुआ है, जिसकी वजह से ये दुश्मन के विमान को जल्दी खोज कर उसके वार करने से पहले वार करके नष्ट कर देता है.
कौन से देश उपयोग में ले रहे हैं राफेल?
राफेल लड़ाकू विमान सस्ता और बहुपयोगी होने के कारण एविशयन मार्केट में बहुत उपयोगी है और फ्रांस अपने इस विमान को दुनिया के कई देशों को सप्लाई करता है. फिलहाल फ्रांस की एअर फोर्स और नेवी के अलावा मिस्र, कतर और भारत इस विमान के खरीदार है. इस विमान को खरीदने के लिए बेल्जियम, कनाडा, फिनलैण्ड, मलेशिया और युनाईटेड अरब अमीरात भी रूचि रखते हैं.
भारत में राफेल विमान को लेकर विवाद
राफेल विमान घोटाला अब भारत की राजनीति में सुना जाने वाला सबसे आम शब्द बन गया है. राफेल विमान की कीमत को लेकर सारा विवाद शुरू हुआ है. विपक्ष केन्द्र सरकार पर राफेल विमान सौदा घोटाला को लेकर आरोप लगाती रही है. राफेल विमान सौदा क्या है? राफेल डील घोटाला क्यों कहा जा रहा है? राफेल घोटाला किसने किया? इन सवालों के जवाब खोजन के लिए इस डील के इतिहास में जाना जरूरी है.
राफेल लड़ाकू विमान की खरीद की बातचीज 2012 में शुरू होती है जब दासो ने इन बहुउद्देशीय विमानों के लिए सबसे कम बोली लगाकर भारतीय सेना का सौदा हासिल किया था. डासो एविएशन ने बोइंग सुपर होर्नेट, यूरोफाइटर, एफ -16 फाल्कन, मिग-35 जैसे विमानों को पछाड़ कर यह डील जीती थी. इसके तहत डासो को 20 अरब डालर की कीमत में 126 विमान देने थे जिनमें से ज्यादातर फ्रांस के सहयोग से भारत में ही एचएएल को बनाने थे.
भारतीय वायु सेना लडाकू विमानों की कमी का सामना कर रही है और जरूरत के हिसाब से 43 लडाकू स्क्वैड्रन के बजाय उसके पास अभी केवल 34 लडाकू स्क्वैड्रन हैं. अगले 8 वर्षों में इनमें से भी 8 स्कवैड्रन के विमान पुराने होने के कारण बेडे़ से बाहर हो जायेंगे.
क्यों खरीदे भारत ने राफेल विमान
डासो राफेल दो इंजन वाला और डेल्टा विंग वाला मल्टीपरपरज लड़ाकू विमान है. dassault rafale india डासो एविएशन इस विमान का निर्माण करती है. फ्रांस ने अपने मिराज विमानों की जगह इन विमानों का ज्यादा विकास किया है. यही वजह रही कि उसने टेण्डर में मिराज की जगह इन विमानों की खरीद की पेशकश की. चूंकि भारतीय वायू सेना पहले से ही मिराज 2000 को अपने आॅपरेशन्स के दौरान इस्तेमाल कर रही है इसलिए मिलती जुलती तकनीक वाले राफेल को इस्तेमाल करना ज्यादा मुश्किल काम नहीं रहने वाला है.
राफेल पूरी तरह फ़्रांसीसी तकनीक पर आधारित है. इसका सौ फीसदी विकास इसी मुल्क में किया गया है. ऐसे में भारत को इसके तकनीक हस्तांतरण में इंटरनेशनल ट्रैफिक इन ऑर्म्स रेगुलेशन की बंदिशो का सामना नहीं करना पड़ेगा और बड़ी आसानी से भारत को पांचवी पीढ़ी के युद्धक विमान की तकनीक प्राप्त हो जाने वाले है.
राफेल की इस खूबी ने उसे इस दौड़ में आगे रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. इसके अलावा यह भारतीय परिस्थितियों में पूरी तरह कारगर साबित हो रहा था और परमाणू हमले के लिए भी इस विमान को आदर्श माना जा रहा है. इस विमान का नौसैनिक संस्करण भी भारतीय युद्धपोतों पर तैनाती के लिए बेहतर विकल्प की तरह उभरा है. इसके दोनों संस्करण का इस्तेमाल फ्रांसीसी सेना द्वारा सफलतापूर्वक किया जा रहा है.
कैसे हुई विवाद की शुरूआत?
भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब तीन देशों के विदेश दौरे के तहत फ्रासं सरकार के साथ 36 विमानों की सीधी खरीद का समझौता किया गया. हालांकि इस विमान के लिए भारत पहले ही rafale fighter jet manufacturer डासो से समझौता कर चुका था लेकिन पिछले कई वर्षों से सौदेबाजी के पेंच में यह बहुउपयोगी लडाकू विमान फंसा हुआ था.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के बीच बातचीत के बाद आखिरकार सहमति बन गई और भारत सीधे फ्रांस सरकार से ही 36 राफाल विमान खरीदने के लिए तैयार हो गया. प्रधानमंत्री मोदी ने फ्रांस की यात्रा पर रवाना होने से पहले ही फ्रांसीसी रक्षा कंपनी डसाल्ट रफाल और हिन्दुस्तान एरोनोटिक्स लिमिटेड के बीच पिछले तीन वर्षों से जारी सौदे से जुडी बातचीत को दरकिनार कर सीधे सरकार से विमान सौदे के बारे में बात करने का निर्णय लिया था. यह बातचीत विमानों की कीमत और गारंटी को लेकर अधर में लटकी हुई थी.
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