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Ellora caves facts, history, timings and information hindi

एलोरा चित्र ellora caves images
एलोरा चित्र ellora caves images

एलोरा गुफाएं भारत ellora caves facts

एलोरा के गुफा मन्दिर संसार के महान आश्चर्यों में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं. इन गुफाओं में जो चित्रकारी की गई है, उन्हे देखने से ही इनकी महानता का वास्तविक मूल्यांकन हो सकता है.  प्राचीनकाल से ही भारतवर्ष कला के क्षेत्र मे संसार का अग्रणी देश रहा है. एलोरा की गुफाए उस प्राचीन कला और सभ्यता की प्रतिनिधी है जो भारत में विकसित हुई है.


कहां स्थित है एलोरा की गुफाएं? 

एलोरा की गुफाए हैदराबाद के नजदीक स्थित शहर औरंगाबाद में स्थित हैं. औरंगाबाद रेल्वे स्टेशन के समीप ही एक गांव है जिसे ‘ऐलोरा’ गांव कहते है. यहां जिन गुफाओ का उल्लेख करने जा रहे हैं, वे इसी गांव मे पड़ती हैं.

एलोरा की गुफाओं का सुंदर वर्णन एक अंगेज विद्वान की पुस्तक है ‘केव टेम्पल्स आॅफ इंडिया’ में मिलता है. औरंगाबाद रेल्वे स्टेशन से लगभग चौदह मील की दूरी पर एलोरा ग्राम बसा हुआ है. 

इस गांव को लोग कई नामों से पुकारते है. कोई एलापुर, कोई बलरू और कोई यलुरू आदि नाम लेते हैं. पर प्रचलित नाम एलोरा ही है और इसी नाम से यह संसार में प्रसिद्ध है. पहले यह गांव हैदराबाद के निजाम की रियासत में पडता था पर अब स्वंतत्र भारत का एक विकसित ग्राम है.

एलोरा की गुफाएं किसने बनवाई ellora caves information


एलोरा ग्राम के सम्बन्ध में एक कहानी भी प्रचलित है. कहते है, आठवीं सदी में यहां एक हिन्दू राजा राज्य करता था, उसका नाम ‘यदु’ था. उसकी राजधानी एलिचपुर थी. उसी ने ‘एलोरा’ ग्राम को बसाया था. 

इस कहानी के प्रमाण में इतिहास के पन्ने मौन हैं. पर लोगो में इसी बात का प्रचार है और लोग इसी को सत्य मानते है. जो भी हो, एलोरा गुफा मन्दिर इसी गांव में, आबादी से आधी मील की दूरी पर स्थित है. 

ये मन्दिर लम्बाई में लगभग डेढ़ मील लम्बे हैं. एलोरा गुफा मंदिर का सर्वप्रथम उल्लेख दसवी शताब्दी की एक भौगौलिक पुस्तक में​ मिलता है, हालांकि पुस्तक में नाम का जिक्र नहीं है लेकिन वर्णन से अंदाजा लगाया गया है कि यहां इसी गुफा की बात की गई है.



अजंता एलोरा की गुफाएं इतिहास ellora caves history


सर्वप्रथम इन गुफा के सम्बन्ध में पूरी जानकारी लोगो का सन् 1306 में हुई. इन दिनों अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली की गद्दी पर शासन करता था. कहते है कि गुजरात के बादशाह की कन्या कमला देवी बचने के लिए भाग कर एलोरा के गुफा मन्दिर में ही छिपी थी. 

अलाउदीन खिलजी के सेनापति काफूर को इसका पता चल गया था. उसने कमला देवी को यहीं गिरफ्तार कर लिया और दिल्ली भेज दिया था. इससे पता चलता है कि उस जमाने के लोगो को काफी पहले से ही ऐलोरा की गुफाओ की पूरी जानकारी थी यदि ऐसी बात न होती तो गुजरात नरेश की पुत्री वहां कैसे पहुंच पाती. उसने उन गुफा मन्दिर को अपनी सुरक्षा के लिये सर्वोत्तम स्थान समझा था और इसीलिये उसकी शरण मे गई थी.

एलोरा गुफा मंदिर का वास्तुशिल्प  architecture of ellora caves   


एलोरा में मन्दिरों की संख्या कुल चौंतीस हैं. इनमें बौद्धो के बारह मन्दिर है, जैनियों के पांच और हिन्दुओ के सत्तरह इस प्रकार हिन्दू मन्दिरो की संख्या बौद्ध और जैनियों के मन्दिर के बराबर ही है. इन मन्दिरों की बनावट को देखकर लोग दांतो तले अंगुली दबाते है. 

वैसे तो भारत में पर्वतो को काटकर मन्दिर बनाने का रिवाज बहुत प्राचीन काल से चला आ रहा है प्राचीन काल में ऐसे अनेक मन्दिर बनाये गये है, पर एलोरा के टक्कर के कोई भी मन्दिर नहीं बन पाये हैं.
     
हिन्दुओं, बौद्धों तथा जैनियों के मन्दिर सब एक दूसरे से सटे हुये है. बौद्धो के मन्दिर दक्षिण की और बनाये गये हैं और जैनियो के मन्दिर उत्तर की और बने हुए है. हिन्दुओं के मन्दिर बौद्ध और जैन मन्दिरो के बीच मे बने हुए हैं. 

ये सभी मन्दिर पहाड़ को काट कर गुफाओ के भीतर बनाये गये हैं. गुफाओं की लम्बाई उत्तर से दक्षिण तक लगभग डेढ़ मील की है मन्दिर गुफाओं के भीतर ऐ ढलुये पर्वत को काटकर बनाये गये है. 



प्रत्येक गुफा के सामने एक सुन्दर मनोरम आंगन-सा बना हुआ है. गुफा के भीतर घुसने पर, उनकी दीवारों की चित्रकारी और बनावट को देखकर हम चकित रह जाते हैं. आजकल के बडे़-बड़े कारीगरो का सिर इनका देखते ही विस्मय से चकराने लगता है.
     
गुफाओं के भीतर की दीवारों पर विभिन्न रंगो में चित्रकारी की गई है. रंग बिरंग बेल-बूटों, चित्रों और फूल-पत्तियो को देखते ही बनता है. प्रतिमाओं के चेहरो पर जिन भावों की अभिव्यक्ति होती है, जो तरह-तरह की आकर्षक जालियां आदि बनी है, उन्हें देखकर बड़े से बड़ा कलाकार भी आश्चर्य में डूबे बिना नहीं रहता है.

एलोरा का कैलाश मंदिर ellora caves kailash temple


इन्ही मन्दिरो में ‘कैलास’ नाम का एक मन्दिर है. विद्वानों का मत है कि इस मन्दिर के मुकाबले संसार के किसी भी कोने में दूसरा कोई मन्दिर नहीं है. आज तक पहाडों को काटकर जितने भी मन्दिर भारत अथवा संसार के दूसरे हिस्सों में बने है, ‘कैलास’ का यह मन्दिर उन सभी में बढ़कर है. 

उसके टक्कर में दूसरा कोई भी मन्दिर नही है. एलोरा के चौंतीस मन्दिरो में ‘कैलास’ का मन्दिर कला की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ है. वैसे तो वहां जितने भी मन्दिर है, वे सब अपना अलग-अलग विषिष्ट स्थान रखते है. पर हिन्दुओ के मन्दिर सामान्यतया बौद्धों और जैनियों के मन्दिरो से अधिक सुन्दर तथा आकर्षक है.

एलोरा के हिन्दू मंदिर

एलोरा के इन गुफा मन्दिरों में हिन्दुओ के 17 मन्दिरों में से आठ मन्दिर मुख्य रूप से उल्लेखनीय हैं. ये आठों मन्दिर-कैलाश मन्दिर या रंगमहल, लकेश्वर, नीलकंठ धुमारलेन अथवा सीता की चापडी, दशावतार, देववाडा और रावण की खाई नाम से जाने जाते हैं. 

ये आठो मन्दिर विशेष रूप से प्रसिद्ध तथा आकर्षक हैं. इन मन्दिरों मे से सबसे अधिक मूर्तियाॅ ‘रावण की खाई’ नाम मन्दिर में है. अनेक मूर्तियां अभी भी ऐसी हैं जिनमें कही से कोई खराबी नहीं आई है. उनको देखने से ऐसा जान पड़ता है, मानो अभी हाल ही में उन्हे बनाया गया हो.

एलोरा के बौद्ध मंदिर

पुरातत्ववेत्ताओं का कहना है कि एलोरा में जो बौद्ध मन्दिर हे उनका काल 450 और 650 ई सन् के भीतर का है. बौद्ध मन्दिरो में ‘सुनार का झोपडा’ अथवा ‘विश्वकर्मा’ नाम का मन्दिर अत्यधिक भव्य और सभी मे सुन्दर है. इस मन्दिर के चारों तरफ बरामदा है और इसके आगे का भाग खुला हुआ है मन्दिर के भीतर का हिस्सा 65 फुट लम्बा और 45 फुट चौड़ा है. मन्दिर के स्तम्भों की ऊंचाई चौदह फुट है. 

उन मन्दिरों में दोनो और अवलोकितेश्रवर बुद्ध की प्रतिमायें हैं. कही-कही पर सरस्वती और मंजुश्री की प्रतिमाएं भी प्रतिष्ठित की हुई हैं. विद्याद्यर को इन प्रतिमाओं की पूजा करते हुए दिखलाया गया है. बुद्ध की मूर्ति बड़ी ही सुन्दर एवं आकर्षक है. 

उनके एक हाथ में माला तथा दूसरे हाथ मे कमल तथा कंधे पर मृगछाला सुशोभित है. उनकी मुद्रा देखने से ही पता चल जाता है कि वे अभय तथा धर्म-चक्र की स्थिति में हैं. बौद्धो के बारह मन्दिरों मे इसी ढंग की अनेक मूर्तियां हैं पर ‘विश्वकर्मा’ मन्दिर की मूर्तियां अधिक आकर्षक और सुन्दर हैं.

एलोरा के जैन मंदिर

जैन-मतावलम्बियों के पांच मन्दिरों में दो मन्दिर सबसे बड़े और अधिक सुन्दर है. इन मन्दिरों के नाम ‘इन्द्र सभा’ और ‘जगन्नाथ सभा है. पर इन मंदिरों को देखने से ऐसा जान पड़ता है जैसे इनका निर्माण पूर्ण नहीं हो पाया हो. कही-कही से इनमें काम के अधूरा ही छोड़ दिये जाने का पता चलता है. 

‘इन्द्र सभा’ मंदिर बड़ा ही भव्य है. इसमें कई एक बरामदे, कई आंगन आदि हैं. इसकी छत की बनावट बड़े सुंदर ढंग से की गई है. मन्दिर के स्तम्भ, भी बडे आकर्षक ढंग से काटे छांटे गये हैं और देखने मे बड़े विचित्र मालूम पड़ते हैं. 

इन मंदिरों मे पार्श्वनाथ महावीर आदि की अनेक आकर्षक भव्य मूर्तियां हैं. दिगम्बर जैनियों के मन्दिरों मे गोमतेश्वर की भी एक प्रमिमा स्थापित है. मूर्तियों के पास-पास और भी कई मूर्तियां हैं, जो संभवत बाद की स्थापित की हुई हैं.

एलोरा के मंदिर का निर्माण किस काल में हुआ?

इन मन्दिरों के निर्माण कार्य का अभी तक कोई निर्णय नही हो पाया है. विद्वानों में इस विषय पर पूर्ण मतभेद है. अधिकतर लोग इसी कथा को प्रमाण समझते हैं कि आठवी शताब्दी के आप-पास यदु नामक राजा के राज्य काल में ही इन मन्दिरों का निर्माण हुआ होगा. 

इस विषय पर लोगो का मतभेद भले ही हो. पर इन मन्दिरो के अद्वितीय होने में विश्व के सभी विद्वान तथा कलामर्मज्ञ एक मत है. भारत की प्राचीन कला की ये स्मृतियां आज भी विद्यमान है और आज भी संसार के लिये अत्यन्त आकर्षण का केन्द्र हैं.


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