Netaji Bose and Mystery of Missing INA Treasure in Hindi
नेताजी सुभाष चंद्र बोस और आईएनए के खजाने का रहस्य
विजय खंडेलवाल @hindihaat
नेताजी सुभाष चंद्र बोस Netaji Subhash Chandra Bose की मृत्यु की तरह ही रहस्यमय है हिंदुस्तान की आजादी के लिए उनके द्वारा इकट्ठा किए गए खजाने के गुम होने का राज। आजाद हिंद का सपना देखने वाले हिंदुस्तानियों से जुटाया गया उस वक्त के सबसे बड़े खजानों में से एक इंडियन नेशनल आर्मी (आईएनए) Indian National Army (INA) के इस खजाने के मई 1945 में दूसरा विश्व युद्ध World War II समाप्त होने के बाद गायब होने के राज पर आज भी रहस्यों का पर्दा है।
भारत सरकार Govt. of India द्वारा नेताजी से जुड़ी गोपनीय फाइलों के सार्वजनिक करने के बाद कई नए राज सामने तो आ रहे हैं मगर रहस्य उतने ही गहराते जा रहे हैं। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जीवनगाथा केवल भारत और जापान ही नहीं बल्कि विएतनाम, ताईवान और कई यूरापीय देशों से भी जुड़ी है। उनके मृत्यु से लेकर आईएनए INA के खजाने के गायब होने राज इन देशों के कई स्थानों और दस्तावेजों में दफ्न हैं। हिस्ट्री चैनलल टीवी 18 History Chanel TV18 ने एक डॉक्यूमेंट्री के माध्यम से हाल ही खजाने के राज से रहस्य की कई परतों को उतारने की कोशिश की मगर राज अभी तक राज ही हैं।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस से जुड़ी फाइलों को सार्वजनिक करने के बाद कई तथ्य सामने आए हैं। 6 फरवरी 1995 के भारत सरकार के केबिनेट नोट Cabinet Note of 1995 of Govt. of India के अनुसार 18 अगस्त 1945 को ताइपेई Taipei में एक एयर क्रैश में नेताजी की मृत्यु हो गयी थी। इस केबिनेट नोट पर तत्कालीन गृह सचिव के. पद्मनाभैया K. Padmanabhaiah के हस्ताक्षर हैं जिस पर लिखा है कि
There seems to be no scope for doubt that he died in the air crash of 18th August 1945 at Taihoku. Government of India has already accepted this position. There is no evidence whatsoever to the contrary.
हिंदी में पढ़ें: 1995 का केबिनेट नोट (Coming up)
क्या पनडुब्बी से शिफ्ट होना था खजाना
Treasure was to be Shifted from the Submarine!
माना जाता है कि 18 अगस्त 1945 की फ्लाइट में नेताजी सुभाष चंद्र बोस अपने साथ 80 किलोग्राम सोना लेकर निकले थे। हाल ही सामने आई फाइलों के अनुसार 9 अक्टूबर 1978 को भारत सरकार के अफसरों ने वह सूटकेस खोला जो प्लेन क्रैश के समय नेताजी के साथ था। इसमें 14 पैकेटों में 11 किलो सोना मिला था। इन सबसे बड़ा जो रहस्य है वह चौंकाने वाला है।
जापान सागर Japan Sea से 1945 में एक पनडुब्बी Submarine गुप्त रूप से एक रूसी बंदरगाह के लिए रवाना हुई थी। एक जानकारी के अनुसार पनडुब्बी में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक नेताजी सुभाष चंद्र बोस भी सवार थे। मगर दुनिया की नजर में उनकी मृत्यु 12 दिन पहले ही 18 अगस्त 1945 को एक प्लेन क्रैश मे हो चुकी थी। इसी पनडुब्बी में अरबों डॉलर का वो खजाना भी मौजूद था जो मलाया के एक शहर में आईएनए ने भारत की आजादी की लड़ाई के लिए एकत्र किया मगर इस सफर के दौरान रहस्यमय तरीके से गायब हो गया।
सवाल यह है कि क्या नेताजी सुभाष चंद्र बोस और आईएनए INA के पास सिर्फ इतना ही खजाना था जितने के बारे में बताया गया है? भारत के विदेश मंत्रालय के तत्कालीन अंडर सैक्रेट्री आरडी साठे R.D. Sathe ने 1951 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू Jawahar Lal Nehru को लिखा था कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस एक बड़ा खजाना विएतनाम के साइगोन Saigon (अब हो ची मिन्ह Ho Chi Minh City) में छोड़ गए हैं। यह भी बताया गया कि इस खजाने में सोने के आभूषणों के साथ—साथ बेशकीमती रत्न भी थे।
जानकारों के अनुसार जो सूटकेस क्रैश हुए प्लेन में था, उसमें 80 किलो सोना रखा गया था। दरअसल यह 80 किलो सोना कुछ भी नहीं था। चैनल हिस्ट्री टीवी 18 की एक डॉक्यूमेंट्री के अनुसार आईएनए ने हिंदुस्तान की आजादी के लड़ाई के लिए एक बहुत बड़ा खजाना जमा कर लिया था। इस खजाने में केवल सोने चांदी के आभूषण ही नहीं बल्कि रत्न, जवाहरात तथा बेशकीमती वस्तुएं भी थी। इस खजाने के बारे में आजतक न तो कोर्इ सुराग मिला है और न कोई पुख्ता जानकारी।
दुनियाभर से जमा किया था खजाना
Treasures Deposited from Around the World
हिस्ट्री चैनल टीवी 18 ने भारत सरकार द्वारा नेताजी सुभाष चंद्र बोस से जुड़ी फाइले सार्वजनिक किए जाने के बाद एक डॉक्यूमेंट्री जारी की। इसमें भी बताया गया कि केवल चंद किलो सोना ही आईएनए के खजाने में नहीं था। आखिर समूचे हिंदुस्तान के अलावा दुनिया के कई कोनों में बैठे भारतीयों और भारत की आजादी चाहने वाले अनेक लोगों ने आईएनए को सहयोग किया था। क्या यह सच है कि सैकड़ों डॉलर का बताया जाने वाला यह खजाना अरबों डॉलर का था?
क्या यह कहानी वाकई सच है?
Is This Story True?
दूसरे विश्व युद्ध के बाद 15 अगस्त 1945 को जापान सम्राट हीरोहितो Emperor of Japan Hirohito ने जापान के इम्पीरियल रेडियो Imperial Radio of Japan पर आत्मसमर्पण की घोषणा कर दी और मित्र राष्ट्रों की जीत के साथ ही दूसरा विश्वयुद्ध IInd World War समाप्त हो गया। इसके बाद साउथ—ईस्ट एशिया में जापानी कब्जे वाले सभी क्षेत्रों में सुभाष चंद्र बोस द्वारा चलाए जा रहे हिंदुस्तान की आजादी के सभी मिशन खतरे में पड़ गए। दो दिन बाद 17 अगस्त 1945 को जापान के एक प्लेन ने विएतनाम के साइगोन (हो चि मिन्ह) से मंचूरिया के लिए उड़ान भरी। मगर अपने शेड्यूल से हटकर रास्ते में एक रात रुकने के बाद 18 अगस्त को यह प्लेन ताइपे में क्रैश हो गया और इस हादसे में नेताजी बोस और एक सेना अधिकारी की मौत हो गई। दुनिया को यही बताया गया है मगर क्या यह कहानी वाकई सच है?
या फिर यह कहानी सच है!
Or This is the Truth!
इंडो—फ्रेंच हिस्टोरियन जेपीबी मोरे JPB More ने हिस्ट्री चैनल की डॉक्यूमेंट्री में बयान दिया है कि 17 अगस्त 1945 की रात नेताजी ने उनके दादाजी के साथ बिताई थी। नेताजी बोस 18 अगस्त को भी साइगोन में ही थे जिसकी चश्मदीद मोरे की मां स्वयं थी। रहस्य यह है कि अगर नेताजी बोस 18 अगस्त को साइगोन (हो चि मिन्ह सिटी) में थे तो इसी दिन उनकी मौत ताइपे Taipei में कैसे हो सकती है? सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार तो ताइपे श्मशान Taipei Crematorium में 19 अगस्त को किसी का दाह संस्कार भी नहीं हुआ। 22 अगस्त को जरूर एक दाह संस्कार हुआ था, जो कि ना तो सुभाष चंद्र बोस का था और ना ही उस सेना अधिकारी का जिनकी मौत बोस के साथ क्रैश में हुई बताया जाता है। यह दास संस्कार एक जापानी सैनिक ओकुरा का था। बोस का डेथ सर्टिफिकेट Death Certificate of Bose भी 43 वर्ष बाद 1988 में जारी किया गया। उस सेना अधिकारी की मौत अगर प्लेन क्रैश में हुई थी तो उनका दाह संस्कार सैनिक सम्मान से क्यों नहीं हुआ और क्यों नहीं यह संस्कार अधिकारिक रिकॉर्ड में दर्ज है? तो क्या यह कहानी सच है कि जापानी सीक्रेट पुलिस Japanese Secret Police केम्पिताई Kempeitai ने प्लेन क्रैश की यह झूठी कहानी रची थी? क्या नेताजी बोस तथा सेना अधिकारी शिडाय बचकर निकल गए थे और सोवियत रूस चले गए थे?
सुभाष चंद्र बोस के सोवियत रूस से रेडियो ब्रॉडकास्ट
Radio Broadcasts of Subhash Chandra Bose from USSR
बोस की बताई गई मौत के बाद भी मॉस्को रेडियो Radio Moscow पर भारत की आजादी को लेकर तीन संदेश प्रसारित किए गए थे और यह संदेश सुभाष चंद्र बोस नाम के व्यक्ति के थे। तो क्या यह व्यक्ति नेताजी बोस ही थे! 1967 में भी यह संदेश फिर से ब्रॉडकास्ट हुए। हिंदुस्तानी पत्रकार इकबाल बहादुर सक्सेना Iqbal Bahadur Saxena ने भी ऐसा ही एक प्रसारण सुना और मॉस्को रेडियो को एक पत्र लिखा तथा इस प्रसारण की रिकॉर्डिंग की कॉपी और बोस के पते की मांग की। इसके जवाब में मॉस्को रेडियो ने कहा कि सुभाष चंद्र की इजाजत के बिना ना तो वे रिकॉर्डिंग दे सकते हैं और ना ही उनका पता। तो क्या नेताजी इस वक्त तक जिंदा थे! पत्रकार सक्सेना ने आईपीसी IPC की धारा 420 के तहत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी Indira Gandhi और विदेश मंत्री स्वर्ण सिंह Swaran Singh के खिलाफ धोखाधड़ी की शिकायत दर्ज करवाई। सांसद समर गुहा Samar Guha ने भी लोकसभा में यह सवाल उठाया और इसके बाद इंटेलीजेंस ब्यूरो आॅफ इंडिया Intelligence Bureau of India (IB) ने जांच शुरू की। आईबी (IB) को बताया गया कि रेडियो पर वह प्रसारण मॉस्को में पढ़ रहे सुभाष चंद्र नाम के तीन छात्रों में से किसी एक का था। बात तो खत्म हो गई मगर सवाल का जवाब नहीं मिल पाया कि क्या एक छात्र को सरकारी रेडियो पर राजनीतिक प्रसारण की अनुमति मिल सकती थी। केस बंद कर दिया गया तथा पत्रकार सक्सेना का सवाल अनुत्तरित रह गया और रहस्य बरकरार! ठीक उसी तरह, जिस तरह फॉरवर्ड ब्लॉक के चित्ता बासु और कलकत्ता पुलिस इंस्पेक्टर सान्याल की मौत का रहस्य।
पढ़ें: क्या चित्ता बासु और सान्याल जान गए थे कि नेताजी जिंदा थे! (Coming up)
कैलिस के किले का राज
The Secret of the Callice Castle
इंडियन इंडिपेंडेंस लीग Indian Independence League (आईआईएल) इंडियन नेशनल आर्मी (आईएनए) की एक सहयोगी संस्था थी। यह लीग दुनिया के कई हिस्सों से आईएनए के लिए सोना और पैसा जमा किया करती थी। वहीं जापान भी जहां—जहां लड़ाई में जीतता था, वहां लूट—पाट कर सोना और पैसा जमा किया करता था। पेनांग Penang के 150 किलोमीटर दूर दक्षिणी—पूर्व में स्थित शहर इपोह Ipoh जापानी खुफिया तंत्र का केन्द्र माना जाता था। यहां की पुरानी टिन की खानों में सोने को पिघलाया जाता था। यहीं जापान की खुफिया एजेंसी फुजीवारा किकान Fujiwara Kikan का मुख्यालय भी था। फुजीवारा किकान के आईएनए से अच्छे रिश्ते थे। जानकार बताते हैं कि यहां पास ही कैलिस कैसल Callice Castle में सोना जमा किया जाता था और प्रोसेस किया जाता था तथा इपोह भेजा जाता था। आशंका जताई गई कि यहां जमा किए गए सोने की भनक ब्रिटिश शासन को लग गई थी। 20 अगस्त 1945 को मेजर जनरल एसी चटर्जी ने 155 किलो सोने को अपने काबू में ले लिया था जो कि आजाद हिंद सरकार के वित्त मंत्री थे। मोरे के अनुसार यह सोना खजाने का मामूली हिस्सा था जिसका कुछ हिस्सा फ्रांस को मिला।
और क्या—क्या था आईएनए के खजाने में
What else was in the INA Treasure
लंदन यूनाइटेड किंगडम United Kingdom में मौजूद ब्रिटिश आर्काइव British Archive में इंडियन इंडिपेंडेंस लीग और इंडियन नेशनल आर्मी की एक फाइल संख्या 5335 में उस पूंजी की लिस्ट है जो साउथ—ईस्ट एशिया में आईएनए आईआईएल के सदस्यों ने ब्रिटेन को समर्पित की थी। लिस्ट में काफी बेशकीमती चीजों का जिक्र था। जैसे 23 कैरेट का 262 किलोग्राम सोना और 256 बर्मीज माणक जिनकी आज के हिसाब से 40 लाख अमरीकी डॉलर की कीमत है। इसके अलावा कई देशों की मुद्राएं थी। लिस्ट में लिखी सभी चीजों की आज के हिसाब से कीमत 2 करोड़ अमरीकी डॉलर थी। यह खजाना 1952 तक सिंगापुर में रखा गया बताता जाता है।
रॉयटर्स Reuters न्यूज एजेंसी की एक रिपोर्ट 5 अगस्त 1947 को आॅस्ट्रेलिया के एक अखबार में छपी जिसके मुताबिक आईएनए का एक बहुत बड़ा खजाना सितम्बर 1945 में जापान के सैनिक अधिकारियों को टोक्यो में सौंपा गया जिसकी कीमत एक हजार करोड़ येन यानी 66 करोड़ 70 लाख अमरीकी डॉलर थी। इसके बाद उस खजाने की कोई जानकारी सामने नहीं आयी जिसकी कीमत आज 900 करोड अमरीकी डॉलर है।
कहा जाता है कि खजाने में 18,400 कैरेट का एक शुद्ध अनकट पन्ना, 17,880 कैरेट वजनी पन्ने की बनी भगवान बुद्ध के सिर की आकृति, शुद्ध पन्ने की एक फुट की भगवान बुद्ध की 1700 साल पुरानी मूर्ति जिसका वजन 14,700 कैरेट था। नेताजी की मौत के सात साल बाद जिन दो सूटकेसों को जापान सरकार ने भारत सरकार को सौंपा, क्या वह असली खजाने का छोटा सा हिस्सा नहीं था?
यूआईटी—25 पर हमले का रहस्य
Mystery of the Attack on the UIT-25
कभी इंडियन आर्मी में रहे कलकत्ता पुलिस के इंस्पेक्टर सान्याल के अनुसार नेताजी 18 अगस्त 1945 को सिंगापुर से एक पनडुब्बी में रवाना हुए थे। विशेषज्ञों का मानना है कि इस बात की पूरी सम्भावना थी कि नेताजी 12 दिन की दूरी पर स्थित व्लादिवोस्तक जा रहे थे। अमरीकी हवाई जहाजों ने 2 सितम्बर 1945 को मोनसुन ग्रुप Monsun Group की एक पनडुब्बी यूआईटी—25 पर हमला किया। आखिर यह हमला क्यों हुआ! जापान, इटली और जर्मनी तो आत्मसमर्पण कर चुके थे। कहीं यह हिंदुस्तानियों की आजादी के लिए जमा किए गए आईएनए के खजाने के लिए तो नहीं था?
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