Valentine Day: Great Love Stories in Hindi
दो महान प्रेम कहानियां
विजय खंडेलवाल @hindihaat
संत वैलेंटाइन Saint Valentine को तो हम वैलेंटाइन डे Valentine Day मनाकर प्रेम के लिए उनके योगदान को याद कर लेते हैं, मगर ऐसी कई महान प्रेम कहानियां Great Love Stories हैं जिन्हें वैलेंटाइन के इतिहास History of Valentine के साथ सदा सर्वोच्च स्थान मिलेगा। जानिए दो महान प्रेम कहानियां हिंदी में Great Love Stories in Hindi.
आम्रपाली के अनंत प्रेम की कहानी
Story of Amrapali’s Eternal Love
भारत में वैशाली के प्रजातांत्रिक राज्य में स्त्रियों पर पर्दा प्रथा जैसी रीति की बोझ नहीं था। यहां शिक्षा का प्रचलन होने के कारण स्त्रियां भी कई कलाओं में पारंगत और पढ़ी-लिखि होती थी। इसके बावजूद स्त्रियों को उनके वास्तविक अधिकार प्राप्त नहीं थे। स्त्रियां भोग की वस्तु समझी जाती और उन्हें शिक्षा भी इसीलिए दी जाती थी ताकि वे पुरुषों को अपने ज्ञान और कला से अधिक आनंदित कर सकें। जो लड़कियां अधिक सुन्दर होती थी उन्हें राजकुमारों और सामंतों के भोग के लिए बाध्य किया जाता।
आम्रपाली और थेरीगाथा
Amrapali and Buddhist Scripture Therigatha
इसी राज्य में आम्रपाली (अम्बापाली) नाम की एक इतिहास-प्रसिद्ध वेश्या हुई। आम्रपाली Amrapali बचपन में समाज की इस कुप्रथा के दलालों के हाथों पड़ वेश्या का जीवन बिताने के लिए मजबूर की गई। कहा जाता है कि किसी अच्छे घराने की कोई स्त्री उसे पैदा होते ही राजा के बगीचे में एक आम के पेड़ के नीचे छोड़ गई थी और इसीलिए उसका नाम आम्रपाली Amrapali पड़ा। साफ है कि आम्रपाली कोई जारपुत्री थी जिसे एक माली ने पाला। आम्रपाली जब बड़ी हो गई तो उसका अनुपम सौंदर्य और यौवन के कारण उस माली ने पैसा कमाने के चक्कर में आम्रपाली को वेश्यावृत्ति की ओर धकेल दिया। इसके बाद भी आम्रपाली ने अपनी स्वाभाविक सहृदता और सुशीलता जैसे सद् गुणों का त्याग नहीं किया। विद्वता और मोहात्मक आकर्षण के कारण पूरे भारत में आम्रपाली की ख्याति फैल गई। आम्रपाली की एक और महत्वपूर्ण खूबी थी कि वह कविताओं की भी रचना करती थी। बौध ग्रंथ थेरीगाथा Buddhist Scripture Therigatha में भी आम्रपाली की एक कविता शामिल हुई है जिसमें उसने शारीरिक रूप की निंदा और आध्यात्मिक सौंदर्य का वर्णन किया है।
आम्रपाली और बिंबिसार
Amrapali and Bimbisar
मगध देश के राजा बिंबिसार भी आम्रपाली की ख्याति सुनकर वैशाली आए और लगातार सात दिन तक आम्रपाली से प्रणय संबंध बनाए। इसके फलस्वरूप आम्रपाली को एक पुत्र हुआ जो अभय के नाम से प्रसिद्ध हुआ। त्याग के भाव से प्रेरित होकर अभय बौद्धों के सन्यासाश्रम में प्रविष्ट हो गया। अपने प्रति अपने ही पुत्र की घृणा के कारण आम्रपाली ने भोगी जीवन को छोड़ अपने जीवन में सादगी लाने के प्रयत्न शुरू कर दिए।
गौतम बुध और सन्यासिनी आम्रपाली
Gautam Budhha and Hermit Amrapali
एक दिन आम्रपाली ने सुना की उनके उद्यान के बाहर महात्मा बुध अपने शिष्यों के साथ ठहरे हुए हैं। आम्रपाली बुध से मिलने पहुंची जीवनभर कई संभ्रांतों की प्रेम और भोग की लालसा पूरी करने वाली आम्रपाली बौध की अलौकिक अनुभूति में डूब गई। महात्मा बुध ने उसे धर्म का मर्म समझाया। दूसरे दिन आम्रपाली ने बुध को अपने यहां भोजन पर निमंत्रित किया। लोग और बुध के शिष्य सोच में पड़ गए कि क्या महात्मा बुध क्या ऐसी स्त्री के यहां जाएंगे जो समाज की कलंकिता है। बुध अपने निर्णय पर अटल रहे तो सबको ज्ञान हुआ कि किसी स्त्री का वेश्यापन उसका बाह्य संस्कार मात्र है और उसके भीतर की विशुद्ध आत्मा पर इसका जरा भी दाग नहीं पड़ सकता। आम्रपाली ने बुध को आनंद के साथ भोजन कराया। बुध के चले जाने के बाद आम्रपाली के हृदय में हाहाकार मचने लगा। इसके बाद आम्रपाली का जीवन परिवर्तित हो गया।
आम्रपाली नेअपनी लाखों रुपए की सम्पति बौध मत के प्रचार के लिए दान कर दी और स्वयं सन्यासिनी होकर अपने अनंतकालीन प्रेमी के ध्यान में रात-दिन मग्न रहने लगी।
महाकवि चंडीदास की प्रेम-कथा
Love Story of Chandidas
महाप्रभु चैतन्य Mahaprabhu Chaitanya से लेकर रवींद्रनाथ Rabindranat और शरतचंद्र Sharat Chandra जैसे जितने भी महापुरुष बंगाल Bengal की धरती पर पैदा हुए हैं, सब किसी न किसी रूप में महाकवि चंडीदास Great Poet Chandidas की ही मर्मगाथा से प्राणोदित हुए हैं। प्रेमगत-प्राण महाकवि चंडीदास ने अपनी पूर्ण आत्मा को प्रेम के अनंत रस में निमज्जित कर दिया था। प्रेम ही उनके जीवन का मूलमंत्र, जप-तप, साधान और सिद्धि था। चंडीदास ने अपनी पदावली में सब जगह ‘पिरीति’ अर्थात प्रिति की ही रट लगाई है। एक साधारण बरेठन (धोबन) से चंडीदास को जो आमरण प्रेम हुआ, उसे इस महापुरुष ने अंत तक अत्यंत श्रद्धा और आत्मविश्वास पूर्वक निभाया।
चंडीदास का आरम्भिक जीवन
Early Life of Chandidas
इतिहासविदों के अनुसार महाकवि चंडीदास का जन्म चौदहवीं शती के प्रारम्भ में वीरभूमि जिले के नान्नूर नामक गांव में हुआ था। अनुमान है कि चंडीदास के पिता की आर्थिक स्थिति अत्यंत साधारण थी और वे ग्राम देवी ‘बाशुली’ के पुजारी थे। चंडीदास बचपन में ही अनाथ हो गए थे और उत्तराधिकारी के रूप में बाशुली के पुजारी बने। अत्यंत सुन्दर होने के कारण नवयुवतियां और स्त्रियां चंडीदास की और आकर्षित होती थी परन्तु चंडीदास के मन में किसी भी स्त्री के लिए किसी प्रकार का विचार नहीं आया। लेकिन कौन जानता था कि यह महापुरुष किसी साधारण धोबी की लड़की के प्रेम में पड़कर आने वाली मानवजाति के लिए प्रेम की नई व्याख्या New Definition of Love गढ़ने वाला था।
चंडीदास और रामी का प्रेम
Love of Chandidas and Rami
चंडीदास अपने गांव से एक-दो कोस दूर तेहाई नामक एक गांव में नदी किनारे प्रकृति का आनंद लेने जाया करते थे। वहीं रामी नाम की एक धोबी लड़की को देखकर उसके प्रति आकर्षित हो गए। कई दिनों तक चंडीदास रामी से कुछ नहीं बोले और केवल आंखों से ही प्रेमसुख प्राप्त करते। बंगाल के साहित्य अन्वेषकों का मत है कि चंडीदास और रामी का यह प्रेम कामगंध से परे अत्यंत पवित्र था। दोनों एक दूसरे को देखे बिना नहीं रह पाते थे और इसी कारण रामी ने धोबी का काम छोड़ दिया और नान्नूर आकर बाशुली मंंदिर प्रांगण में बुहारी देने का काम करने लगी।
अब रामी सदैव चंडीदास की आंखों के सामने रहने लगी और रामी के प्रेम में उन्नत चंडीदास रोज नए प्रेम पदों की रचना करते। मंदिर प्रबंधन और अधिकारियों को जब यह बात पता चली कि चंडीदास पुजारी का एक अस्पृश्य जाति की युवती से प्रेम प्रसंग चल रहा है, तो उन्होंने चंडीदास को अपमानित कर मंदिर से निकाल दिया। इसके बाद चंडीदास ने रामी का खुले रूप से स्वीकार कर लिया।
चंडीदास की काव्य-रचना
Poetry of Chandidas
चंडीदास ने रामी के लिए जो प्रेम पद लिखे, यह भेद आज भी साहित्यान्वेषक पूरी तरह नहीं जान पाए हैं। दो अलग-अलग भावों की अभिव्यक्ति एक ही कविता और कहीं-कहीं तो एक ही पद में करना आज तक रहस्य ही है। चंडीदास रामी को सम्बोधित करते हुए लिखते हैं कि-
तुमि रजकिनी आमार रमणी, तुम हओ पितृ-मातृ।
त्रिसंध्या-याजन तोमारई भजन, तुम वेदमाता गायत्री।।
अर्थात् “हे रजकिनी, तुम मेरी रमणी हो और मेरे माता-पिता भी तुम ही हो। तीनों समय मैं केवल तुम्हारा ही भजन करता हूं क्योंकि वेदमाता गायत्री तुम्ही हो।”
लोक निंदा के बावजूद चंडीदास न तो ईष्ट मार्ग से विचलित हुए और न ही रामी के प्रेम से। रामी को सम्बोधित करते हुए चंडीदास ने लिखा है-
कलंकी बलिया डाके सब लोके ताहाते नाहिक दु:ख।
तोमार लागिया कलंकेर हार गलाय परिते सुख।।
अर्थात् “सब लोग मुझे कलंकी कहकर पुकारते हैं पर मुझे इसका दु:ख नहीं। तुम्हारे कारण कलंक का हार भी गले में धारण करने में सुख का अनुभव होता है।”
चंडीदास की इस तरह की अलौकिक प्रेरणा पाकर रामी भी कविता करने लगी।
कहा जाता है कि चंडीदास और रामी दोनों ‘सहज’ मतावलम्बी होकर ‘परकीया’ धर्म में दीक्षित हो गए थे। सहजिया सम्प्रदाय बौध धर्म की विभिन्न शाखाओं में से एक था। रामी स्वयं को राधा मानकर चंडीदास को कृष्ण के रूप में भजती तो चंडीदास अपने को कृष्ण मानकर रामी से राधा के रूप में संबंध रखते।
चंडीदास का मनुष्य धर्म
Humanism of Chandidas
चंडीदास के भाई नकुल Nakul ने परिवार को सामाजिक कलंक से बचाने के लिए चंडीदास से आग्रह किया और ब्राह्मणों के लिए एक भोज का आयोजन किया। नकुल ने चंडीदास से कहा कि रामी को त्याग कर समाज में पुन: प्रवेश कर जाओ और समाज को भोजन कराकर प्रायश्चित कर लो। रामी ने भी नकुल को समझाया कि चंडीदास और वो एक मिश्रण हैं और उन्हें अलग करने का प्रयास किया गया तो अनर्थ हो जाएगा। रामी के मन में भी बहम था कि कहीं नकुल से प्रेम के कारण चंडीदास कहीं उसकी बात नहीं मान ले। चंडीदास ने नकुल की बात तो नहीं मानी परन्तु नकुल के हठ के कारण ब्राह्मणों को भोजन कराने पहुंच गया। रामी को जब यह पता चला तो वह भी वहां पहुंची। रामी को इतना व्याकुल देख कर चंडीदास अपने को रोक नहीं पाए और पूरे समाज के सामने रामी को गले से लगा लिया। चंडीदास की महान प्रेमात्मा ने कट्टरपंथियों को अपने वश में कर एक अस्पृश्या को भी ब्राह्मणों के समान अधिकार पर प्रतिष्ठित करने के लिए प्रेरित कर दिया क्योंकि वह मनुष्य धर्म के मानने वाले थे। महाकवि चंडीदास की महावाणी ने मानव धर्म के बारे में कहा कि-
शुनो रे मानुष भाई।
सबार उपरे मानुष सत्य,
ताहार उपरे नाई।।
अर्थात् “हे मनुष्य भाई सुनो। सबके ऊपर मनुष्य सत्य है, उसके परे कोई नहीं।”
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