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Parshuram History in Hindi

भगवान परशुराम जी की जीवनी

भगवान परशुराम भारत की ऋषि परम्परा के महान वाहक थे. उनका शस्त्र और शास्त्र दोनों पर समान अधिकार था. वे भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं. उनका प्रभाव त्रेता युग से शुरू होकर द्वापर तक जाता है. उनका जीवन एक आदर्श पुरूष का जीवन था. 

भगवान परशुराम का जन्म 

भगवान परशुराम के पिता महर्षि जमदग्नि और माता रेणुका थी. पौराणिक आख्यान के अनुसार भगवान परशुराम का जन्म पुत्रेष्ठि यज्ञ के बाद देवराज इंद्र के वरदान के बाद हुआ था. परशुराम जी का जन्म वैशाख शुक्ल की तृतीया को हुआ. इसलिए अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान परशुराम की जयन्ती मनाई जाती है. उनके पितामह भृगु ने उनका नाम अनन्तर राम रखा जो शिव द्वारा दिए गए अस्त्र परशु को धारण करने की वजह से परशुराम हो गया.

परशुराम जीवन परिचय

परशुराम जी शिक्षा-दिक्षा महर्षि विश्वामित्र एवं महर्षि ऋचीक के आश्रम में हुई. महर्षि ऋचीक तो अपने शिष्य की योग्यता से इतने प्रसन्नत हुए कि उन्होंने परशुराम जी को सांरग धनुष उपहार में दिया. उनकी प्रतिभा और दैवीय गुणों से प्रभावित होकर ऋषि कष्यप ने उन्हें अविनाशी वैष्णव मंत्र प्रदान किया. भगवान शंकर की उन्होंने अराधना की और शिव ने उन्हें विद्युदभि नाम का परशु प्रदान किया. भगवान शिव से उन्हें त्रैलोक्य विजय कवच, स्तवराज स्रोत और कल्पतरू मंत्र भी प्राप्त हुआ. 

गुरू परशुराम

परशुराम ने जी ने अपनी अद्भुत शस्त्र विद्या से समकालीन कई गुणवान षिष्यों को युद्ध कला में पारंगत किया. उनके सबसे योग्य शिष्य गंगापुत्र भीष्म रहे जिन्हें पूरा भारत आदर की दृष्टि से देखता है. इसके अलावा द्रोण और कर्ण भी  उनके षिष्य थे.

भगवान परशुराम का उल्लेख दोनो महान भारतीय महाकाव्यों रामायण और गीता में मिलता है. तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस में उनके और लक्ष्मण के बीच हुआ संवाद बहुत पठनीय और लोकप्रिय है. 

परशुराम जी की पूजा पूरे भारत में होती है. हर वर्ग उनको पूजनीय मानता है. एक मान्यता के अनुसार भारत के ज्यादातर गांव परशुराम जी ने ही बसाए थे. पूरे उत्तर भारत से लेकर गोवा, केरल और तमिलनाडु तक आपको परशुराम जी की प्रतिमा के दर्शन होंगे.

परशुराम जी और क्षत्रियों का विनाश

परशुराम जी ने 21 बार इस पृथ्वी को क्षत्रियों से विहिन किया, ऐसी मान्यता है. इस कथा के अनुसार हैहय वंश के राजा सहस्त्रार्जुन या कार्तवीयअर्जुन ने घोर तपस्या की और भगवान दत्तात्रेय को प्रसन्न कर लिया. भगवान दत्तात्रेय ने उसे एक हजार भुजाए और युद्ध में अपराजित होने का वरदान दे दिया.

एक बार राजा सहस्त्रार्जुन वन में आखेट करता हुआ अपनी सेना के साथ ऋषि जमदग्नि के आश्रम पहुंचा. वहां उसने ऋषि की कामधेनू गाय को देखा तो उसने बलपूर्वक उसे जमदग्नि से छीन ले गया. इस बात का पता जब परशुराम को चला तो उन्होंने सहस्त्रार्जुन को युद्ध के लिए ललकारा और उसकी सभी भुजाओं को अपनी फरसे से काट डाला और उसका वध कर दिया.

सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने इसका प्रतिशोध लेने के लिए परशुराम जी की अनुपस्थिति में महर्षि जमदग्नि के आश्रम पर आक्रमण कर दिया और जमदग्नि की हत्या कर दी. परशुराम जी की माता रेणुका भी अपने पति के साथ सती हो गई. 

कुपित परशुराम ने हैहयवंशीय राजा के महिष्मति नगर पर आक्रमण कर सभी क्षत्रियों का विनाश कर दिया. अपने क्रोध को शांत करने के लिए उन्होंने इस पृथ्वी को 21 बार क्षत्रिय विहिन कर दिया. 

भगवान परशुराम जी की कथाएं

परशुराम जी की अनेक कथाएं प्रचलित है. एक कथा के अनुसार उन्होंने भगवान गणेश के साथ भी युद्ध किया और इस घोर युद्ध में उनके फरसे से भगवान गणेष का एक दांत टूट गया और वे एक दंत कहलाए.

राम और परशुराम की कथा रामायण में आती है, जब भगवान राम ने सीता स्वयंवर के दौरान शिव का धनुष भंग किया तब परशुराम जी और लक्ष्मण जी के बीच विवाद हुआ. भगवान राम ने क्षमा याचना और अपने मीठे शब्दों से उनका क्रोध शांत किया. एक कथा के अनुसार भगवान राम को उनका धनुष परशुराम जी ने ही प्रदान किया था.

परशुराम की प्रतिज्ञा

महाभारत में भी परशुराम जी की कथा कई बार आती है, जिनमें से दो कथाएं बहुत प्रसिद्ध है. एक कथा भीष्म के साथ उनके युद्ध की है. परशुराम जी ने राजकुमारी अंबा को न्याय दिलवाने के लिए भीष्म के साथ घोर युद्ध किया लेकिन उसका कोई परिणाम नहीं निकला और आखिर में वे अंबा को न्याय नहीं दिलवा सके तो उन्होंने शपथ ली कि वे भविष्य में किसी भी क्षत्रिय को युद्ध कला की शिक्षा नहीं देंगे.

महाभारत की दूसरी प्रमुख कथा कर्ण की है. जब कर्ण को उन्होंने अपना शिष्य बनाया और कर्ण की वास्तविकता जानने के बाद उसे श्राप दिया कि जब उसे उनकी शिक्षा की सबसे ज्यादा जरूरत होगी तभी वह इस शिक्षा को भूल जाएगा.

भगवान परशुराम और कल्कि अवतार

हिंदु पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान परशुराम जी कलियुग में अवतार लेने वाले कल्कि अवतार के भी गुरू बनेंगे और भगवान विष्णु के दसवें अवतार को युद्ध कौशल की शिक्षा देंगे.

भगवान परशुराम की शिक्षा

भगवान परशुराम को उनकी पितृभक्ति के लिए जाना जाता है. उनकी शिक्षा है कि माता-पिता का आदर सर्वोच्च है.भगवान परशुराम प्रकृति पोषक थे और प्रकृति का किसी भी प्रकार का विरोध करना वे ईष्वर का विरोध मानते थे.महिला का सम्मान एक सद्पुरूष के लिए अनिवार्य गुण मानते थे और इसी वजह से अंबा का सम्मान लौटाने के लिए अपने सबसे प्रिय शिष्य भीष्म के साथ युद्ध किया.

परशुराम के अन्य नाम

परशुराम जी को अन्नतर राम, जमदग्नि के पुत्र होने के कारण जामदग्न्य, गोत्र के कारण भार्गव और ब्राह्णश्रेष्ठ भी कहा जाता है.

परशुराम मंत्र

भगवान परशुराम मंत्र को परशुराम गायत्री मंत्र के नाम से भी जाना जाता है. इस मंत्र का विधिपूर्वक जप करने से मनुष्य को अपने दुखों से छुटकारा मिलता है और कठिनाइयों से लड़ने के लिए साहस का संचार होता है. मंत्र इस प्रकार है— 

1. 'ॐ ब्रह्मक्षत्राय विद्महे क्षत्रियान्ताय धीमहि तन्नो राम: प्रचोदयात्।।'
2. 'ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि तन्नो परशुराम: प्रचोदयात्।।'
3. 'ॐ रां रां ॐ रां रां परशुहस्ताय नम:।।'

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