Irfan Khan Biography and letter in hindi
इरफान खान के जीवनी Biography of Irrfan Khan
इरफान खान हिन्दी फिल्मों के बढ़े सितारे है जिन्हें अपनी अलाहदा फिल्मों से पहचान बनाई. उन्होंने टेलीविजन से शुरूआत की और हालीवूड तक अपने काम के दम पर पहचान बनाई. एक मंझे हुए अभिनेता के साथ-साथ एक सजिंदा इन्सान भी है. जो देश और दुनिया से जुडे़ मामलों पर अपनी बेबाक राय रखते है.
इरफान खान का आरंभिक जीवन Irrfan khan short Biography
इरफान खान का पूरा नाम साहबजादा इरफान अली खान है. उनका जन्म 7 जनवरी, 1966 को जयपुर राजस्थान में हुआ. उनकी माता का नाम बेगम खान और पिता का नाम जागीरदार खान है. इरफान खान की शिक्षा जयपुर राजस्थान में ही हुई. उन्होंने नेशनल स्कूल आॅफ ड्रामा से 1984 में अभिनय की शिक्षा ली.
इरफान खान का कॅरिअर Irfan khan career
इरफान खान ने एनएसडी की पढ़ाई पूरी करने के बाद मुबंई का रूख किया. उन्होंने अपनी शुरूआत टेलीविजन से की. भारतीय दर्शकों के बीच उन्होंने टीवी सीरियल चाणक्य, भारत एक खोज, सारा जहां हमारा, बनेगी अपनी बात, चन्द्रकांता, श्रीकांत और अनुगूंज में अपने उम्दा अभिनय से जगह बनाई. उन्होंने लाल घास पर नीला घोड़ा नाटक में लेनिन की भूमिका निभाई.
irrfan khan movies
उनकी जिंदगी में बड़ बदलाव तब आया जब उन्होंने मीरा नायर की फिल्म सलाम बाॅम्बे में एक केमियों रोल निभाया. 1988 में इस फिल्म से वे पहली बार सिल्वर स्क्रीन पर नजर आए. इसके बाद उन्हें एक डाॅक्टर की मौत और सच अ लाॅग जर्नी में काम करने का मौका मिला. इन फिल्मों से उन्हें पहचान तो मिली लेकिन दर्शकों ने उन्हें ज्यादा पसंद नहीं किया. अभिनय की दुनिया में वे आसिफ कपाड़िया की फिल्म द वरियर से स्थापित हुए. लंदन के फिल्म मेकर द्वारा बनाई गई इस फिल्म में इरफान मुख्य भूमिका में थे. इस फिल्म को पूरी दुनिया में सराहा गया और इरफान की पहचान बनी. बाॅलीवुड में इस सफलता ने उनकी एंट्री करवा दी.
विशाल भारद्वाज ने अपनी फिल्म मकबूल में बड़ा रोल दिया. फिल्म में दर्शकों ने पसंद किया. इसके बाद 2005 में बतौर हिरो वे रोग फिल्म लेकर दर्शकों के सामने आए. आलोचकों ने इरफान के अभिनय के कशीदे गढ़ दिए. इसके बाद तो सफलता उनके कदम चूमने लगी. 2004 में उन्हें फिल्म हासिल के लिए फिल्म फेयर बेस्ट विलेन का सम्मान मिला. हिन्दी फिल्मों के साथ उन्होंने क्षेत्रीय भाषा की फिल्में भी की.
2007 में आई उनकी फिल्म लाइफ इन अ मेट्रो ने बाॅक्स आफिस पर तहलका मचा दिया. इस फिल्म के लिए उन्हें बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का फिल्म फेयर अवाॅर्ड मिला. इसके बाद तो कतार से उनकी फिल्में आने लगी. भारत के साथ ही विदेशों में भी काम करने का अवसर मिला. अ माइटी हार्ट, द दार्जिलिंग लिमिटेड जैसी अन्तर्राष्ट्रीय फिल्मों में उनके अभिनय को सराहा गया.
इरफान खान को 2008 में स्लमडाॅग मिलेनियर में काम करने का मौका मिला. इस फिल्म को आॅस्कर मिला और हाॅलीवुड का ध्यान इस नफीस अदाकार के ऊपर गया. इसके बाद उनकी पान सिंह तोमर में उनके अभिनय का लोहा पूरी दुनिया मान गई. उन्होंने एचबीओ के लिए इन ट्रीटमेंट सीरिज में भी काम किया. इसी बीच हाॅलीवुड में उन्हें द अमेजिंग स्पाइडर मैन में छोटे रोल में देखा गया.
इरफान खान को आंग ली की फिल्म लाइफ आॅफ पाई में काम करने का मौका मिला. जिसे पूरी दुनिया में सफलता मिली. यह फिल्म इरफान के करिअर में एक मिल का पत्थर साबित हुई. उनकी द लंच बाक्स को कान फिल्म फेस्टीवल में ग्रैंड डियोर सम्मान मिला.उन्होंने इसके बाद गुंडे़, द एक्सपोज, पीकू और जुरासिक वल्र्ड जैसी फिल्में की. इसके बाद वे तलवार, जज्बा और हिन्दी मिडियम, करीब-करीब सिंगल में लीड रोल में नजर आए. हिन्दी मिडियम के लिए उन्हें बेस्ट एक्टर का फिल्म फेयर अवाॅड दिया गया.
इरफान खान का पारिवारिक जीवन Irrfan khan personal life
इरफान खान ने 1995 में अपनी एनएसडी की साथी irrfan khan wife सुतपा सिकदर से शादी की. उनके दो बेटे बाबिल और अयान हैं. फरवरी 2018 में इरफान खान को एक दुर्लभ बीमारी irrfan khan cancer न्यूरोइंडोक्राइन कैंसर होने का पता चला. तब से वे लंदन के एक अस्पताल में अपना इलाज करवा रहे हैं. उनके प्रशंसक उनकी जल्दी irrfan khan health स्वस्थ होने की दुआ कर रहे हैं. ,
इरफान खान फिल्मोग्राफी Irfan khan filmography
1988— सलाम बॉम्बे
1989— कमला की मौत, जजीरा
1990— दृष्टि, एक डॉक्टर की मौत
1991— पिता
1993— करामाती कोट
1994— द क्लाउड डोर, पुरुष
1998— बड़ा दिन
2000— द गोल, घात
2001— द वॉरियर, कसूर, बोक्षू द मिथ, प्रथा
2002— काली सलवार, गुनाह , हाथी का अण्डा
2003— हासील, धुंध: द फॉग, फुटपाथ, मकबूल, द बाइपास
2004— शेडोज आॅफ टाइम, आन: मैन एट वर्क, रोड टू लद्दाख, चरस
2005— रोग, चेहरा, साढ़े सात फेरे
2006— यु होता तो क्या होता, द फिल्म, द किलर, डेड लाइन: सिर्फ 24 घण्टे, सैनिकुदू
2007— अ माइटी हार्ट, लाइफ इन ए मेट्रो, द नेमसेक, द दार्जिलिंग लिमिटेड, अपना आसमान, पार्टीशन
2008— तुलसी, सन्डे, क्रेजी—4, मुबंई मेरी जान, स्लमडॉग मिलेनियर, चमकू, दिल कबड्डी,
2009— एसिड फैक्टी, बिल्लू, न्यूयॉर्क
2010— राइट या रांग, नॉक आउट, हिस्स
2011— ये साली जिंदगी, सात खून माफ, थैंक्यू,
2012— पान सिंह तोमर, द अमेजिंग स्पाइडर मेन, लाइफ आॅफ पाइ
2013— साहब, बीबी और गैंगस्टर रिटर्नस, डी डे, द लंच बॉक्स
2014— गुंडे, हैदर
2015— किस्सा, पीकू, जुरासिक वर्ल्ड, तलवार, जज्बा
2016— द जंगल बुक, इंफर्नो, मदारी
2017— हिन्दी मिडियम, दूब: नो बेड आॅफ रोजेज, द सांग आॅफ स्कॉर्पियन्स, करीब—करीब सिंगल
2018— ब्लैक मेल, पजल, कारवां
Irrfan Khan letter from the hospital
इरफान खान का खत जो उन्होंने लंदन अस्पताल से लिखा
कुछ महीने पहले अचानक मुझे पता चला कि मैं न्यूरोएन्डोक्राइन कैंसर से ग्रस्त हूं। यह शब्द मैंने पहली बार सुना था। जब मैंने इसके बारे में सर्च की तो पाया कि इस पर ज्यादा शोध नहीं हुए हैं। इसके बारे में ज्यादा जानकारी भी मौजूद नहीं थी। ''यह एक दुर्लभ शारीरिक अवस्था का नाम है और इस वजह से इसके उपचार की अनिश्चितता ज्यादा है।'
'अभी तक मैं तेज रफ्तार वाली ट्रेन में सफर कर रहा था। मेरे कुछ सपने थे, कुछ योजनाएं थीं, कुछ इच्छाएं थीं, कोई लक्ष्य था.. फिर किसी ने मुझे हिलाकर जगा दिया, मैंने पीछे मुड़कर देखा तो वो टीसी था। उसने कहा आपका स्टेशन आ गया है। कृप्या नीचे उतर जाइए- मैं कंफ्यूज था.. मैंने कहा- नहीं नहीं अभी मेरा स्टेशन नहीं आया। उसने कहा- नहीं आपको अगले किसी भी स्टॉप पर उतरना होगा। 'इस डर और दर्द के बीच मैं अपने बेटे से कहता हूं, 'मैं किसी भी हालत में ठीक होना चाहता हूं। मुझे अपने पैरों पर वापस खड़े होना है। मुझे ये डर और दर्द नहीं चाहिए।'
कुछ हफ्तों के बाद मैं एक अस्पताल में भर्ती हो गया। बेइंतहा दर्द हो रहा है.. 'मैं जिस अस्पताल में भर्ती हूं, उसमें बालकनी भी है.. बाहर का नजारा दिखता है। कोमा वार्ड ठीक मेरे ऊपर है। सड़क की एक तरफ मेरा अस्पताल है और दूसरी तरफ लॉर्ड्स स्टेडियम है... इस दर्द के बीच मैंने वहां विवियन रिचर्ड्स का मुस्कुराता पोस्टर देखा। मुझे ऐसा लगा कि ये दुनिया मेरी कभी थी ही नहीं। अब उस ओर देखकर ऐसा लगता है कि जिंदगी और मौत के बीच एक लंबी रोड है.. बस ये रोड।
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