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Egypt Pyramids History-Facts-Types-Architecture-मिश्र के पिरामिड, इतिहास और रोचक तथ्य

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Egypt Pyramids History-Facts-Types-Architecture

विश्व के महान आश्चर्य—मिश्र के पिरामिड, इतिहास और रोचक तथ्य

Egypt- ईजिप्ट जिसे मिश्र के नाम से भी जाना जाता है कि संस्कृति और सभ्यता भी बहुत पुरानी है.  प्राचीन काल में यह देश विश्व-सभ्यता के शिखर पर था. इसका विज्ञान बहुत उन्नत था और इसकी प्रजा बहुत सुखी थी. 

मिश्र की सभ्यता का समय के साथ पतन होता चला गया और आज इस देश का मात्र ऐतिहासिक महत्व रह गया है. अब यहां कला-कृतियो एवं उसकी उन्नति, उद्भव के अवशेष मात्र बचे हुए हैं. हालांकि आज जो पुराने कला-कौशल और सभ्यता के कुछ चिन्ह विद्यमान है, उन्हें देखकर आजकल के बड़े-बड़े वैज्ञानिक, कला विद् एवं इंजीनियर भी दांतो तले अंगुली दबाये बिना नहीं रह सकते.

pyramids of Egypt

Egypt pyramids- मिश्र के पिरामिड इस सूची में पहले पायदान पर है. एक समय ऐसा था कि यह मानव निर्मित दुनिया की सबसे बड़ी इमारते थी. आज भी इस तरह का दूसरा कुछ बना पाना आधुनिक इंजीनियरों के बस की बात नहीं है. मिश्र के pyramid- पिरामिड इस वैज्ञानिक विकास के युग में भी बड़े-बडे इंजीनियरों और वैज्ञानिकों का खुली चुनौती देते है. 

Why were the pyramids built- क्यों बनाए गए पिरामिड

‘पिरामिड’ एक प्रकार के स्तम्भ कब्र को कहते है, जो आधार में विस्तृत और शिखर तक क्रम से  पतला होता जाता है. अधिकातर पिरामिड चौकोर ही होते हैं. मिश्र में इस तरह के हजारों छोटे-बड़े पिरामिड हैं. इतिहास के लेखकों का मत है कि पुराने जमाने में जो राजा मिश्र में राज्य करते थे, वे अपने लिए मृत्यु से पूर्व ही कब्र बनवा लेते थे. इन्हीं कब्रों को पिरामिड कहते हैं. 

Pyramids of Giza- गिजा के पिरामिड

वैसे तो मिश्र में जहां-तहां हजारों पिरामिड देखने को मिलेगी पर वहां पर ‘गिजा’ नाम का एक स्थान है, जहां तीन विशाल पिरामिड दिखलाई पड़ते हैं. दूर से देखने पर ये ऊंचे पर्वतो की तरह जान पड़ते हैं. पहाड के आकार के समान दिखलाई पड़ने वाले इन पिरामिडो के चारों तरफ रेगिस्तानी जमीन है. इनके चारों तरफ बहुत दूर-दूर तक बालू ही बालू नजर आती है.

pyramids in Egypt

रेगिस्तानी मैदान में विशाल पत्थरों के बन हुए, ये पिरामिड सचमुच मे संसार के प्रसिद्ध वैज्ञानिक मस्तिष्कों को भी चक्कर मे डाले बिना नहीं रह सकते. लोगों के लिये यह कल्पना करना भी असम्भव सा हो जाता है कि हम जैसे हाड़-मांस के बने आदमियों ने ही इनका निर्माण कर अपनी अद्वितीय बुद्धि और कार्य कुशलता का परिचय प्रस्तुत किया है. सर्वप्रथम जब इन पिरमिडों को विदेशियों ने देखा था, तो वे इन्हें मानवीय कृति मानने को तैयार ही नहीं थे. 

अब से हजारों वर्ष पूर्व मिस्र के लोगों ने अपने अद्भुत बौद्धिक बल एवं कार्य कुशलता से इन विशाल इमारतों का निर्माण किया. कहते हैं कि इन Egyptian pyramids- पिरामिडों में जितन वजनी पत्थर लगे हुए हैं, उन्हें आजकल की बड़ी-बड़ी पत्थर ढोने वाली मशीने अथवा क्रेनें भी नहीं उठा सकती. 

मिश्र के ये Egyptian pyramids- पिरामिड संसार के सामने एक महान आश्चर्य के रूप में विद्यमान हैं. उस रेतीले रेगिस्तानी मैदान में इतने भारी-भारी शिला खंड किस प्रकार पहुंचाये गये होंगे और उन्हें उठाकर इतनी ऊंचाई तक किस प्रकार पहुंचाया गया होगा, इन सब बातों को गंभीरतापूर्वक सोचने के पश्चात् बड़े-बडे़ बुद्धिमानों का सिर भी चकरा कर रह जाता है.


How old are the Pyramids-कितने पुराने है पिरामिड?

पुरातत्वेताओं का अनुमान है कि ये पिरामिड लगभग चार हजार वर्ष से भी पहले के बने हुए है. हजारों वर्ष बीतने के पश्चात् भी इन्हें देखकर ऐसा जान पड़ता है मानों ये अभी हाल के ही बने हुए हों. इन पिरामिड़ो के भीतरी हिस्सों में जो रंगीन कारीगरी की गई है, उनको देखने से मालूम पड़ता है कि इन्हें बने अभी बहुत अधिक दिन नहीं हुए है. भीतर की कारीगरी के बेल-बूटे आज भी वैसे ही चमक रहे हैं. जैसे वे चार हजार वर्ष पहले चमकते रहे होंगे.

सबसे पुराने इतिहास लेखक हेरोडोट्स ने भी इन पिरामिडों का उल्लेख किया है. हेरोडोट्स ने जो इतिहास लिखा है उसमें ग्रीस के साथ हुए युद्ध का इतिहास है. हेरोडोट्स ने इन पिरामिडों का उल्लेख करते हुए लिखा है कि ये पिरामिड मिश्र के तत्कालीन राजओं ने अपनी कब्र के लिए बनवायें थे.

मिश्र में पुराने जमाने में यह प्रथा थी जो राजा मरता था, उसका शव पिरामिड में दफना दिया जाता था. उसके साथ ही उसके परिवार के सदस्य, दरबारी, राज्य के अन्य कर्मचारी तथा अन्य प्रमुख लोग, जो राजा के प्रति सम्मान रखते थे, राजा के मृत शव के साथ ही इन पिरामिड़ो में प्रवेश कर जाते थे. इसके पश्चात् पिरामिड का द्वार बन्द कर दिया जाता था और बाहर से सीमेंट और चूने से उसकी जुड़ाई कर दी जाती थी. इसे किवदंती माना जाता है और इसका कोई आधार नहीं मिला है कि जिंदा लोगों को इन पिरामिडों में दफन किया गया है.

why were the pyramids really built-क्यों बनवाए गए थे पिरामिड?

मिश्र में राजा पिरामिड अपने लिए ही बनवाता था. पिरामिड में दो कमरे (किसी-किसी में तीन भी मिले हैं) होते थें. एक तो स्वयं राजा के लिए होता था तथा और दूसरा संभवत उसकी रानी के लिए होता था. मरने के बाद राजा को पिरामिड के उसी कमरे में रख दिया जाता था. उसके शव के साथ बहुमूल्य संपदा भी रखी जाती थी. इसके बाद पिरामिड का दरवाजा बन्द कर दिया जाता था. रानी की मृत्यु होने के पश्चात् रानी का शव भी पिरामिड के उस दूसरे कमरे में रखा जाता था. तब कहीं पिरामिड का द्वार स्थायी रूप से बन्द किया जाता था.

pyramids and mummies- पिरामिड के ममी

मिस्र के पिरामिडों से जो मृत शव प्राप्त हुए उन्हें देखने से पता चलता है कि ये मुर्दे अभी बहुत अच्छी हालत में है और शव का क्षय नहीं हुआ है. किसी विशेष विधि और विशेष मसाले में भरकर इन मुर्दो को रखा गया था कि हजारो वर्षो पश्चात् भी वे ज्यों के त्यो पाये गये हैं. उनमें कहीं से भी कोई खराबी अथवा दुर्गन्ध आदि नही आती थी. इन मुर्दो को देखने से उस जमाने के शवरक्षण और चिकित्सा विज्ञान के विषय में बहुत कुछ जानकारी मिली है. उन दिनों के लोग भी आज के जैसे लोगो की तरह ही होते थे. 

वे न तो अधिक लम्बे होते थे और न औसत से अधिक छोटे ही होते थे. उनकी चौड़ाई भी आजकल के आदमियों की तरह ही होती थी. उस जमाने के और आजकल के लोगों के आकार प्रकार में कोई खास अन्तर नहीं होता था. हेरोडोट्स के इतिहास में कथित पिरामिडो का उल्लेख कई स्थानो पर मिलता है यह इतिहास ईसा से लगभग 445 वर्ष पूर्व लिखा गया था. 

हेरोडोट्स ने लिखा है- ‘मोम्फिस नगर के पुजारियों ने मुझे बताया कि सबसे बडा पिरामिड मिश्र  के चिआप्स नामक बादशाह ने अपनी कब्र के लिए बनवाया था. इसका निर्माणकाल ईस्वी सन् से 900 वर्ष पूर्व नियत किया गया है. एक लाख मजदूरों ने प्रतिदिन काम करके बीस वर्षों में इस पिरामिड को बनाया था. इसके बनवाने वाल बादशाह चिआप्स का मृत शव पिरामिड के नीचे के कमरे मे रखा गया. इस कमरे के चारो ओर एक सुरंग भी है. इस सुरंग मे होकर नील नदी का पानी पिरामिड के नीचे-नीचे बहा करता है.


how were pyramids built step by step- कैसे बनाए गए पिरामिड?


हेरोडोट्स के उपरोक्त कथन के ऐतिहासिक प्रमाण है. इस पिरामिड की नींव 550000 वर्ग फीट के घेरे में रखी गई है. इसकी बनावट चौकोर है इसकी प्रत्येक दीवार 255 गज लम्बी है. इसकी ऊंचाई 158 गज है. इतिहासकारों का कहना है कि जब यह पिरामिडि बना था तो इसकी ऊंचाई 167 गज थी पर इसके ऊंपर के दो खंड गिर पड़े इस प्रकार अब इसकी ऊंचाई कम रह गई है. इस पिरामिड की बनावट ऐसी कुशलता से की गई है कि देखते ही बनता हैं. 

एक चबूतरे पर दूसरे का निर्माण किया गया हो. ऊपर का हर चबूतरा अपनी नीचे के चबूतरे से छोटा होता गया है. इससे यह पिरामिड दूर से देखने पर सीढ़ियो की एक कतार सा जान पड़ता हैं. चबूतरो के निर्माण की जो शैली है, वह ठीक सीढ़ियो की तरह ही है. इससे ऊपर चढ़ने में बड़ी आसानी होती है. इस प्रकार की इसमे 203 सीढ़ियां है. ज्यों-ज्यों हम ऊपर जाते हैं सीढ़ी की चौड़ाई लगभग 4 फीट 9 इंच कम की गई है. 

pulling strings to build pyramids- कैसें पहुंचाए गए इन पिरामिडों के पत्थर?

इस पिरामिड के निर्माण के साधनों के सम्बन्ध मे इतिहास लेखक हेरोडोटस ने लिखा है- मोथ्स्फिस के पुजारियों से मैंने पूछा कि यह पिरामिड किस प्रकार बनाये गये? इसके उतर में मुझे बताया गया कि कारीगरों ने इसके लिए लकड़ी की एक मशीन बनाई थी. इसी मशीन की सहायता से चबूतरों का निर्माण होता गया. पहला चबूतरा बन गया तब लकड़ी की मशीन को पहले चबूतरे पर रखा गया और उसी के सहारे से दूसरे चबूतरे पर पत्थर चढ़ाये गये.

पिरामिडो के पत्थरों की जुड़ाई इतनी कुशलता से की गई है कि कही नोक भर का भी अन्तर देखने को नहीं मिलता. इतनी ऊंची इमारत में कहीं पर कोई त्रुटि देखने को नहीं मिलती. एक भी पत्थर कही रत्ती भर टेढे-मेढे रूप में नही लगा हुआ है. अलग से देखने पर मालूम पड़ता है, पत्थर की यह इमारत ईश्वरीय कृति है. सीमेंट और चूने से ऐसी जुड़ाई हुई है कि उसने एक पत्थर को दूसरे से एकदम चिपका-सा दिया है.

इस पिरामिड के पत्थरों की ऐसी गढ़न है. इतनी खूबी से कारीगरों ने इसे तरासा है कि इनमें कहीं भी रूखापन देखने को नहीं मिलता. उन पर चमक और चिकनाहट को देखकर आजकल के बड़े-बड़े वैज्ञानिको का सिर चकरा जाता है.

Types of pyramids- पिरामिड के प्रकार

गिजा का दूसरा पिरामिड, जो पहले वाले पिरामिड से कुछ छोटा है, पर उससे कम नही है. इसकी ऊंचाई 152 गज है और व्यास 228 गज. तीसरा पिरामिड जो पहले और दूसरे पिरामिडो से छोटा है, पर सौन्दर्य में दोनों से ज्यादा है, 58 गज ऊंचा है और इसकी नींव का घेरा 110 गज है. इस पिरामिड के सम्बन्ध मे कहते है कि यह एक विषेष प्रकार के पत्थर से बनाया गया हैं. इसमें अब जहां-तहां से कुछ खराबियां आने लगी हैं. किन्तु अभी भी यह पिरामिड अन्य दोनो से अधिक सुन्दर लगता है.

सबसे बड़े तथा प्रथम पिरामिड को मिश्र के बादशाह चिआप्स ने अपनी कब्र के लिए बनवाया था. दूसरे पिरामिड को जिसकी उंचाई एवं व्यास पहले से कम है, चिआप्स के छोटे भाई सिफरेन ने अपनी कब्र के लिए बनवाया था. चिआप्स के मरने के पश्चात् सिफरेन ही मिश्र की गद्दी पर बैठा था. तीसरे पिरामिड के सम्बन्ध में, जो पहले दोनो पिरामिडो से छोटा है, कहते है कि चिआप्स के पुत्र पिसेरिनस ने अपनी कब्र के लिए बनवाया था.

जहां पर ये तीनों पिरामिड बने हुए हैं वहां और भी कई छोटे-बडे पिरामिड है. इस स्थान को लोग मिश्र के बादशाहों का कब्रगाह कहते हैं. स्थानीय लोगो की धारणायें बनी हुई हैं कि जिस बादशाह ने जितने ही अधिक दिनों तक राज्य किया, उसने अपने लिए उतना ही बड़ा पिरामिड (कब्र) बनवाया. इस देश के आदि निवासियों के पिरामिड मकबरो की तरह ही है. इनमें कई पिरामिडो मे ईस्वी सन् के चौदह-पन्द्रह सौ वर्षों पहले के सबूत भी पाये जाते है.


Pyramids facts in Hindi- पिरामिड से जुड़े रोचक तथ्य

सबसे बड़े पिरामिड का रास्ता 17 से 47 फीट की उंचाई पर है. उसके दरवाजे की लम्बाई एवं चौड़ाई साढ़े तीन फीट है. भीतर की और प्रवेष करने पर यह लगभग एक सौ फीट तक ढालू होता चला गया है. 

इसके पश्चात् दाहिनी तरफ रास्ता मुड़ता है और जहां पर मोड समाप्त होता है, वही से चौड़ाई की शुरूआत होती है. काफी दूर-चलने पर सर्वप्रथम एक कमरा मिलता है. यह कमरा लगभग बारह फीट ऊंचा है और इसकी लम्बाई चैड़ाई 17×17 फीट के लगभग है. 

लोगों कहना है कि यह कमरा रानी के लिए बनाया गया था. इसी कमरे से होकर एक मार्ग आगे की ओर गया है. एक सौ बीस फीट ऊपर चढ़ने पर एक और कमरा मिलता है. वह कमरा पहले वाले से अधिक ऊंचा और अधिक लम्बा-चौडा है. इसकी ऊंचाई बीस फीट है तथा लम्बाई-चौडाई 37×17 फीट के लगभग है. 

इस कमरे की दीवारे संगमरमर पत्थर की बनी हुई हैं और इनका रंग एकदम लाल है. इस पर जो वार्निश की गई है उसकी चमक आज भी वैसी ही है. इसकी दीवारों में जो पत्थर लगाये गये है उनमें कही से कोई जोड़ नहीं दिखाई देता है. नींव से छत तक में एक ही प्रकार का पत्थर लगा हुआ है. छत भी संगमरमर की ही बनी हुई है और उसका रंग भी एकदम लाल ही है. इस कमरे को लोग राजा का कमरा कहते हैं. 

इसी कमरे में मिश्र की सबसे बड़ी बादशाहत का बादशाह चिआप्स दफनाया गया था. राजा के इस कमरे के शिखर पर एक कब्र भी बनी हुई है जिसकी लम्बाई सात फीट एवं चौड़ाई तीन फीट है.

शुरूआत में जिन लोगों ने पिरामिड में घुस कर इन कमरों का पता लगाया है. उनको जगह-जगह कुछ लेख आदि भी दीवारों पर खुदे हुए मिले हैं. उस समय तक उन्हें इस पिरामिड मे केवल दो ही कमरों का पता चला था. बहुत खोज के बाद भी उन्हें वहां और किसी और कमरे के होने का पता नहीं चल सका.

सन् 1817 ईस्वी में इटली के निवासी कप्तान कविग्यिा ने इस पिरामिड में प्रवेश किया और इसकी पूरी तरह से जांच पड़ताल की. बहुत प्रयत्नों के पश्चात् उसे एक तीसरे कमरे का पता चला. इस कमरे की उंचाई पन्द्रह फीट तथा लम्बाई-चौडाई 66×27 फीट की है. 

इस कमरे के बीच में एक गड्ढ़ा भी मिला है, जिसकी गहराई पांच फीट बताई जाती है. पर वह गड्ढ़ा बिल्कुल खाली पड़ा हुआ था. उस गड्ढ़े में अथवा उस कमरे में कोई शव नही मिला. इसलिये यह अंदाज लगाना कठिन हो गया कि वह कमरा किसके लिये बना था और वह गड्ढ़ा क्यों खोदा गया था. 

तरह-तरह की कल्पनाये लोग इसके विषय में करते हैं, परन्तु अभी तक कोई प्रामाणिक बात सामने नहीं आई है. अत यह तीसरा कमरा अभी तक कल्पना का विषय ही बना हुआ है.
खोज करने वालों ने दूसरे तीसरे पिरामिडों का रास्ता भी खोज निकाला है. इनमें भी कमरे पाये गये हैं. 

दूसरे पिरामिड के एक कमरे की ऊंचाई 23 फीट तथा लम्बाई व चौड़ाई 46×16 फीट की है. इस कमरे में भी एक कब्र है. इसमें हड्डियां भी पाई गई हैं. इस कमरे में अरबी में लिखा एक लेख भी पाया गया है. इससे लोगों का अनुमान यह है कि बहुत पुराने काल में अरब का कोई बादशाह इसमें आया था और इसके प्रमाण में वह यह लेख छोड़ गया था. 

पहले पिरामिड में पाये जाने वाले तीनों कमरों की दीवारों पर भी अरबी ओर रोमन लिपि में नाम लिखे हुए पाये गये हैं. इनसे पता चलता है कि पुराने जमाने में रोम और अरब के निवासी इनमें प्रवेश कर कमरो का पता लगा चुके थे.

सन् 1834 में हावर्डवाइज नाम के एक बहादुर अंग्रेज ने तीसरे पिरामिड का रास्ता ढूंढ निकाला था. इसमें भी उसे सुन्दर संगमरमर का बना हुआ एक कमरा मिला है. इस पिरामिड में उसे 3500 वर्ष पुराना बादशाह नेसीनस का कफन और उसका शव मिला था जिसे उसने लंदन के म्यूजियम में भिजवाया था.

Inside pyramids-क्या है पिरामिडो के भीतर का रहस्य?

इन तीनों पिरामिडों में भीतर के हिस्से में मिश्र की तत्कालीन भाषा में अभिलेख आदि लिखे हुए मिले है. जिस लिखावट में ये लेख है, उसे ऐरलोग्राफी करते हैं. इनके आकार अक्षरों जैसे नहीं है. अक्षरो की जगह चित्र बने हुए हैं. बड़-बड़े यूरोपीय विद्धानों ने इस लिखावट का अर्थ समझने में वर्षों परिश्रम किया है. उन्हें इसमे बहुत कुछ सफलता भी मिली है. इन लेखो से मिश्र के इतिहास की जानकारी में बड़ी सहायता मिल रही है.

इन पिरामिडों के बनाने मेें जिस पत्थर का उपयोग किया गया है उसे आकूत पत्थर कहते है. सन् 1166 में मिश्र के सुल्तान सलादीन के पुत्र ने गिजा के छोटे पिरामिड को खुदवाना शुरू किया था. वह इसकी खुदाई इसलिये करवा रहा था ताकि उसकी सामग्री से एक नया महल अपने निवास के लिये बनवा सके. इस काम के लिए उसने फौज की सहायता ली. एक बड़ी फौज लगातार एक माह तक पिरामिड की खुदवाई का काम सरगर्मी के साथ करती रही. 

एक माह तक बराबर खोदने के बाद वहां पत्थरों का एक पहाड सा खड़ा हो गया. परन्तु आश्चर्य यह है कि वह पिरामिड आज भी वैसा ही खड़ा है. इतनी खुदाई होने पर भी उसमें कहीं से कोई अन्तर नहीं आया है.
     
इन पिरामिडों  के रहस्यों का पता लगाने में कितनो को अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ी है. इनके भीतर न तो कही से कोई प्रकाश जा सकता है और न इनमे हवा का प्रवेश ही संभव है. ऐसी परिस्थिति में इनमें जो लोग घुसे हैं उन्हें बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है. खोज करने वाले हाथों में मशाल लेकर इसमे प्रवेश करते और अत्यन्त कठिनाईयों का सामना करते हुए अपना मार्ग खोजते. 

How long did it take to build the pyramids-कितने समय में बने पिरामिड?

मिश्र के ये पिरामिड संसार के महान् आश्चर्यों में विशेष स्थान रखते है. हेरोडोट्स ने लिखा है- मुझे बताया गया है कि इन पिरामिडो के बनाने में अनेक बड़े-बड़े कारीगर एवं कला-विशेषज्ञ के अतिरिक्त एक लाख मजदूरो ने तीस वर्षों तक काम किया था. प्रत्येक तीन वर्ष पर आदमी बदल दिये जाते थे. तीन वर्ष पूरे होते ही सब आदमी निकाल दिये जाते थे और उनकी जगह पर नये सिरे से एक लाख आदमी रखे जाते थे.

पिरामिडो की भीतरी दीवारो पर लिखे लेखों से पता चलता है कि इनके बनाने वाले मजदूरों को प्रतिदिन रोटी और प्याज बांटा जाता था. इसी प्रकार एक दिन मे कई हजार दीरहम (अरब का सिक्का) खर्च हो जाता था. काम करने वाले मजदूरो को बादशाह की तरफ से कोई मजदूरी नही दी जाती थी. उनसे बेगार ली जाती थी. बाहशाह को काम करने से कोई इनकार नही कर सकता था. जो मना करते थे उन पर बादशाह के कारिन्दे कोड़े बरसाते थे. इस प्रकार आंतक और भय के बदले में इनमें मजदूरो से काम लिया जाता था. दरअसल मिश्र के बादशाहों की ये कब्र जनता के खून से बनी हुई है. 

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