Karva Chauth in Hindi करवा चौथ का व्रत पति-पत्नी के विश्वास का प्रतीक
करवाचौथ का व्रत पति-पत्नी के विश्वास का प्रतीक
करवा चौथ हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है. हिंदी पंचांग के अनुसार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन करवा चौथ का त्योहार पूरे धूम -धाम से मनाया जाता है. करवाचौथ शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, करवा का मतलब मिट्टी का बरतन और चौथ का मतलब चतुर्थी होता है. इस दिन सुहागन महिलायें अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं और चाँद की पूजा करने के बाद ही खाना खाती हैं.
साल 2018 में करवाचौथ का दिन, पूजा का शुभ समय
Karva Chauth 2018 - साल 2018 में करवाचौथ का व्रत 27 के अक्टूबर के दिन किया जायेगा. इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त शाम को 5.36 बजे से 6.55 बजे तक रेहगा.
करवाचौथ के दिन कितने बजे होगा चंद्रोदय
ज्योतिषियों और खगोलशास्त्रियों के अनुसार 27 अक्टूबर 2018 के दिन चंद्रोदय रात 8 बजे से होने की पूरी सम्भावना है.
करवा चौथ क्यों मनाया जाता है
करवाचौथ का पर्व पति और पत्नी के मजबूत रिश्ते, विश्वास और प्यार का प्रतीक माना जाता है. इस दिन यदि सुहागिन स्त्रियां उपवास रखें तो उनके पति की उम्र लंबी होती है और उनका गृहस्थ जीवन सुखद होने लगता है. राजस्थान, पंजाब, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और हरियाणा सहित कई राज्यों में इस व्रत को त्योहार के रूप में मनाया जाता है. इस दिन भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान श्री गणेश की पूजा की जाती है और करवाचौथ व्रत की कथा सुनी जाती है.
एक बार देवताओं और दानवों के बीच चल रहे युद्ध में देवताओं की हार हो रही थी. ऐसे में देवता ब्रह्मदेव के पास गए और रक्षा की प्रार्थना करने लगे. ब्रह्मदेव ने इस संकट से बचने के लिए सभी देवताओं की पत्नियों को अपने-अपने पतियों के लिए व्रत रखने की युक्ति बताई और कहा कि देवताओं की पत्नियां यदि व्रत रखती हैं तो निश्चित ही इस युद्ध में देवताओं की जीत होगी.
किवदंती की मानें तो ब्रह्मदेव के कहे अनुसार सभी देवताओं की पत्नियों ने कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन व्रत रखा और अपने पतियों (देवताओं) की विजय के लिए प्रार्थना की. उनकी यह प्रार्थना स्वीकार हुई और युद्ध में देवताओं की जीत हुई. इस खुशखबरी को सुन कर सभी देव पत्नियों ने अपना व्रत खोला और खाना खाया. उस समय आकाश में चांद भी निकल चुका था. तभी से पति की लंबी उम्र के लिये करवाचौथ के व्रत की परंपरा शुरू हुई जो निरंतर जारी है.
कार्तिक करवा चौथ व्रत कथा
करवा का पूजन
करवाचौथ पर करवे (मिट्टी के बरतन ) का विशेष महत्व माना गया है. आज कल मिटी के बर्तन की जगह चीनी मिट्टी से बने या स्टील के गिलास भी काम में लिए जाते है. करवाचौथ का व्रत सुबह सूर्योदय से पहले शुरू हो जाता है और रात को चाँद दिखने के बाद ही व्रत को खोला जाता है.
करवा चौथ के व्रत और पूजन के दिन महिलाएं सुबह जल्दी नित्यकर्मों से निवृत्त होकर,नए वस्त्र धारण करने के साथ ही सोलह श्रृंगार जरूर करें. सभी जरूरी पूजन सामग्री ले कर भगवन गणेश, शिव, पार्वती, स्वामी कार्तिकेय और गौरा की मूर्तियों की पूजा करने के साथ ही व्रत का संकल्प लेना चाहिए और शाम को चंद्रमा को छलनी से देखकर चंद्रमा की पूजा और अर्घ्य देने के बाद बड़े बुजुर्गों के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लें और पति के हाथ से पानी पीकर व्रत तोड़ना चाहिए. इससे व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है.
कथाकरवा चौथ पर्व की पूजन सामग्री
सुहाग पूड़ा कुंकुम, दीपक, रुई, कपूर, गेहूँ, शक्कर का बूरा, हल्दी, शहद, अगरबत्ती, पुष्प, कच्चा दूध, शक्कर, शुद्ध घी, दही, सिन्दूर, मेंहदी, महावर, कंघा, बिंदी, चुनरी, चूड़ी, मेंहदी, मिठाई, गंगाजल, चंदन, चावल, बिछुआ, मिट्टी का टोंटीदार करवा व ढक्कन, पानी का लोटा, गौरी बनाने के लिए पीली मिट्टी, लकड़ी का आसन, छलनी, आठ पूरियों की अठावरी, हलुआ, दक्षिणा के लिए यथा सामर्थ्य धनराशि.
पौराणिक हिंदू मान्यताओं के अनुसार चांद को लंबी आयु का वरदान मिला हुआ है साथ ही चंद्रमा को भगवान ब्रह्मा का रूप माना जाता है और चंद्रमा में सुंदरता, शीतलता, प्रेम, और लंबी आयु जैसे गुण होते हैं. इसीलिए सभी महिलाएं चांद को देखकर ये कामना करती हैं कि ये सभी गुण उनके पति में भी आ जाएं.
करवा चौथ के दिन छलनी का क्यों महत्व है
करवा चौथ के व्रत में छलनी का महत्व है. इस दिन पूजा की थाली में सभी सामानों के साथ छलनी भी रखी जाती है. करवा चौथ की रात महिलाएं इस छलनी में पहले दीपक रख चांद को देखती हैं और फिर अपने पति को निहारती हैं.पौराणिक हिंदू मान्यताओं के अनुसार चांद को लंबी आयु का वरदान मिला हुआ है साथ ही चंद्रमा को भगवान ब्रह्मा का रूप माना जाता है और चंद्रमा में सुंदरता, शीतलता, प्रेम, और लंबी आयु जैसे गुण होते हैं. इसीलिए सभी महिलाएं चांद को देखकर ये कामना करती हैं कि ये सभी गुण उनके पति में भी आ जाएं.
करवा चौथ व्रत कथा
एक साहूकार के सात लड़के और एक लड़की थी. सेठानी के सहित उसकी बहुओं और बेटी ने करवा चौथ का व्रत रखा. रात्रि को साहूकार के लड़के भोजन करने लगे तो उन्होंने अपनी बहिन से भोजन के लिए कहा. पर बहिन ने कहा- भैया, अभी चाँद नहीं निकला है, मैं चाँद निकलने पर अर्घ्य देकर ही भोजन करुँगी. लाड़ली बहिन की बात सुनने के बाद उसके भाइयों ने नगर से बाहर जा कर अग्नि जला दी और छलनी ले जाकर उसमें से प्रकाश दिखाते हुए अपनी बहिन से कहा कि चाँद निकल आया है, अर्घ्य देकर भोजन कर लो. यह सुनकर उसने अपने भाभियों से कहा कि आओ तुम भी चन्द्रमा को अर्ग दे लो, लेकिन उन्हें इस बात का पता था, उन्होंने कहा दीदी अभी चाँद नहीं निकला है, आपके भाई आप को अग्नि का प्रकाश छलनी से दिखा रहे हैं. भाभियों की बात पर उसे विश्वास नहीं हुआ और भाइयों द्वारा दिखाए गए प्रकाश को ही अर्घ्य देकर उसने भोजन कर लिया और व्रत भंग हो गया. इस कारण गणेश जी उससे अप्रसन्न हो गए. इसके कुछ समय बाद उसका पति बीमार हो गया और उसकी बीमारी के इलाज में घर बार सब कुछ बिक गए. फिर भी वो स्वस्थ नहीं हुआ. जब उसे अपनी की हुई गलती का पता लगा तो उसने पश्चाताप किया. गणेश जी की प्रार्थना करते हुए विधि विधान से पुनः चतुर्थी का व्रत करने लगी. उसके श्रद्धा और भक्ति को देखकर भगवान गणेश उस पर प्रसन्न हो गये और उसके पति को जीवन दान दे कर उसे आरोग्य करने के बाद पुनः धन-सम्पति से युक्त कर दिया. कहते हैं जो कोई भी छल-कपट को त्याग कर श्रद्धा-भक्ति से चतुर्थी का व्रत करेंगे, वे सब प्रकार से सुखी होंगे.
महाभारत काल की किंवदंती
महाभारत काल में भगवान श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को करवाचौथ की कथा सुनाते हुए कहा था कि श्रद्धा और विधि विधान से करवाचौथ का व्रत करने से समस्त दुख दूर हो जाते हैं और जीवन में सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है. भगवान कृष्ण की बात मानकर द्रौपदी ने करवाचौथ का व्रत रखा. इस व्रत के फलस्वरूप ही अर्जुन सहित सभी पांडवों ने महाभारत के युद्ध में कौरवों की सेना को पराजित किया था. ऐसा कहते हैं कि तभी से पति की लंबी उम्र के लिये करवाचौथ के व्रत की परंपरा शुरू हुई जो निरन्तर जारी है .
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ReplyDeletekarwa lota Silver
karwa lota Copper
karwa lota Brass